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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ८८ स्यासर्वज्ञप्रणीतस्य प्रामाण्यासम्भवात् । पौरुषेयस्य सर्वज्ञप्रणीतस्य तु सर्वज्ञसाधनात्पूर्वमसिद्धेः । नाप्यर्थापत्तिः देशाधन्तरिततत्त्वैविनाऽनुपपद्यमानस्य कस्यचिदर्थस्य प्रमाणषटकप्रसिद्धस्यासम्भवात। न चोपमानमन्तरिततत्त्वास्तित्वे प्रमाणम्, तत्सदृशस्य कस्यचिदुपमानभूतस्यासिद्धेरुपमेयभूतान्तरिततत्ववत् । 'सदुपलम्भकप्रमाणपञ्चकाभावे च कुतोऽन्तरिततत्त्वानि सिद्ध्येयुः ? यतो धर्मासिद्धिर्न भवेत् । धर्मिणश्चासिद्धौ हेतुराश्रयासिद्ध, इलि केचित् तेत्र न परोक्षकाः; केषाञ्चित्स्फटिकाधन्तरितार्थानामस्मदादिप्रत्यक्षतोऽस्तित्वप्रसिद्धः । परेषां कुडयादिदेशव्यवहितानामन्यादीनां तदविनाभाविनो धमादिलिङ्गादनमानात् । कालान्तरितानामपि भविष्यतां वृष्टयादीनां विशिष्टमेघोन्नतिदर्शना. दस्तित्वसिद्धेः, अतीतानां पावकादीनां भस्मादिविशेषदर्शनात्प्रसिद्धः । स्वभावान्तरितानां तु करणशक्त्यादीनामर्थापत्त्याऽस्तित्वसिद्धेः। मिणामन्तरिततत्त्वानां प्रसिद्धत्वाद्धेतोश्चाश्रयासिद्धत्वानुपपत्तेः।
प्रमाण है। और जो असर्वज्ञरचित पौरुषेय आगम है उसके प्रमाणता सम्भव नहीं है । तथा जो सर्वज्ञप्रणीत पौरुषेय आगम है वह सर्वज्ञसिद्धि के पहले सिद्ध नहीं है । अापत्ति भी उनके सद्भावमें प्रमाण नहीं है, क्योंकि देशादिसे अन्तरित पदार्थोंके बिना न होनेवाला छह प्रमाणसिद्ध कोई पदार्थ नहीं है । उपमान भी अन्तरित पदार्थों के अस्तित्व में प्रमाण नहीं है। क्योंकि उनके समान कोई उपमानभूत पदार्थ नहीं है, जैसे उपमेयभत अन्तरित पदार्थ । इस तरह सत्ता-साधक पाँचों प्रमाणों के अभावमें अन्तरित पदार्थ कैसे सिद्ध हो सकते हैं ? जिससे धर्मी असिद्ध न हो और चूँकि धर्मी उक्त प्रकारसे असिद्ध है । इसलिये हेतु आ यासिद्ध है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि स्फटिक आदिसे अन्तरित कितने ही पदार्थोंका सद्भाव हम लोगोंके प्रत्यक्षसे सिद्ध है और दोवाल आदि देशसे व्यवहित अग्नि आदि पदार्थ उनके अविनाभावी धूमादि लिङ्गरूप अनुमानसे सिद्ध हैं। तथा कालसे व्यवहित भावी वर्षा आदि अनेक पदार्थोंका अस्तित्व विशिष्ट मेघोंकी आकाशमें वृद्धिको देखने आदिसे होता है। और जो हो चुके हैं, ऐसे अतीत अग्नि आदि पदार्थ राख वगैरहके देखनेसे प्रसिद्ध हैं तथा स्वभावसे व्यवहित इन्द्रियशक्ति आदि कितने ही पदार्थ अर्थापत्तिसे सिद्ध हैं। इमप्रकार अन्तरित पदार्थरूप धर्मी प्रसिद्ध है
1. मु तदुप'। 2. मु 'सिद्धः'।
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