Book Title: Aptapariksha
Author(s): Vidyanandacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 390
________________ कारिका ९१] अर्हत्सर्वज्ञ-सिद्धि २७७ देशान्तरितानि, नष्टानुत्पन्नानन्तपर्यायतत्त्वानि च कालान्तरितानि, स्वभावान्तरितानि च परमाणवादीनि, जिनेश्वरस्य प्रत्यक्षाणि साध्यन्ते । न च पक्षीकृतैरेव व्यभिचारोद्भावनं युक्तम्, सर्वस्यानुमानस्य व्यभिचारित्वप्रसङ्गात् । [ दृष्टान्तस्य साध्यसाधनवैकल्यं निराकरोति ] ६ २५१. ननु माभूद् व्यभिचारी हेतुः दृष्टान्तस्तु साध्यविकल इत्याशङ्कामपहर्तुमाह न चास्मादृक्समक्षाणामेवमर्हत्समक्षता । न सिद्धयेदिति मन्तव्यमविवादाद् द्वयोरपि ॥९१॥ $ २५२. ये ह्यस्मदृशां प्रत्यक्षाः सम्बद्धा वर्तमानाश्चार्थाः ते कथमर्हतः पुरुषविशेषस्य प्रत्यक्षा न स्युः; तद्देशकालवर्तिनः पुरुषान्तरस्यापि तदप्रत्यक्षत्वप्रसङ्गात्। ततो स्याद्वादिन इव सर्वज्ञाभाववादिनोऽप्यत्र हिमवान्, मेरु, समुद्र आदि रूप देशान्तरित और नाश हई एवं उत्पन्न न हईं अनन्त पर्यायें रूप कालान्तरित तथा परमाणु वगैरह स्वभावान्तरित पदार्थ जिनेश्वरके प्रत्यक्ष सिद्ध किये जाते हैं और इसलिये उन (पक्ष किये गयों) से ही हेतको व्यभिचारी बतलाना युक्त नहीं है। अन्यथा सभी अनुमान व्यभिचारी हो जायेंगे। अर्थात् सभी अनुमानोंके हेतु व्यभिचारी प्राप्त होंगे और इस तरह कोई भी अनुमान नहीं बन सकेगा। __ शंका-हेतु व्यभिचारी न हो, लेकिन दृष्टान्त तो साध्यविकल हैदृष्टान्तमें साध्य नहीं रहता है ? 5 २५१. समाधान-इस शंकाका भी समाधान इस प्रकार है 'इस प्रकार हम लोगोंके प्रत्यक्ष अर्थ अर्हन्तके प्रत्यक्ष सिद्ध नहीं होंगे, यह नहीं समझना चाहिये, क्योंकि उसमें दोनोंको भी विवाद नहीं हैं।' $२५२. स्पष्ट है कि जो पदार्थ हम जैसोंके प्रत्यक्ष हैं, सम्बद्ध हैं और वर्तमान हैं वे अर्हन्तके, जो पुरुषविशेष है, प्रत्यक्ष क्यों नहीं होंगे ? अन्यथा उस देश और काल में रहनेवाले दूसरे पुरुषको भी उनका प्रत्यक्ष नहीं होगा। मतलब यह कि जिन पदार्थों को हम जैसे साधारण पुरुष भी प्रत्यक्षसे जानते हैं और जो सम्बद्ध तथा मौजूद भी हैं उन पदार्थों को तो अर्हन्त जानता हो है-वे उसके प्रत्यक्ष हैं ही उसमें किसीको भी विवाद नहीं है,. क्योंकि अर्हन्त हम लोगोंकी अपेक्षा विशिष्ट पुरुष हैं। अतः स्याद्वादियोंकी तरह सर्वज्ञाभाववादी भी उसमें विवाद नहीं करते हैं और जब वादी तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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