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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ८६ त्वम्, संसारिमुक्तविकल्पात् । सर्वथैकत्वे सकृत्तद्विरोधात् । अचेतनद्रव्यस्य सर्वथैकत्वे मूर्तामूर्तद्रव्यविरोधवत् । मूत्तिमदचेतनद्रव्यं हि पुद्गलद्रव्यमनेकभेदं परमाणुस्कन्धविकल्पात् पृथिव्यादिविकल्पाच्च । धर्माधर्मा. काशकालविकल्पममूत्तिमद्रव्यं चतुर्धा चतुर्विधकार्यविशेषानुमेयमिति द्रव्यस्य षविधस्य प्रमाणबलात्तत्त्वार्थालङ्कारे३ समर्थनात्। तत्पर्यायाणां चातीतानागतवर्तमानानन्तार्थव्यञ्जनविकल्पानां सामान्यतः सुनिश्चितासम्भवबाधकप्रमाणत्परमागमात्प्रसिद्धः साक्षात्केवलज्ञानविषयत्वाच्च न द्रव्यैकान्तसिद्धिः पर्यायैकान्तसिद्धिर्वा । न चैतेषां सर्वद्रव्यपर्यायाणां केवलज्ञाने प्रतिभासमानानामपि प्रतिभासमात्रान्तःप्रवेशः सिद्ध्येत विषयविषयिभेदाऽभावे सर्वाभावप्रसङ्गात, निविषयस्य प्रतिभासस्यासम्भवान्निःप्रतिभासस्य विषयस्य चा व्यवस्थानात् । ततश्चाद्वैतैकान्ते
संसारी और मुक्त इन दो भेदोंको लेकर अनेक है; क्योंकि सर्वथा एक माननेपर एक-साथ संसारी और मक्त ये भेद नहीं बन सकते हैं। इसी प्रकार अचेतन द्रव्य भी यदि सर्वथा एक हो तो मूत्तिकद्रव्य और अमूत्तिकद्रव्य ये भेद नहीं हो सकते हैं। प्रकट है कि मूत्तिमान् अचेतनद्रव्य पुद्गलद्रव्य है और वह परमाणु तथा स्कन्ध एवं पृथिवी आदिके भेदसे अनेक प्रकारका है। और अमूर्तिक अचेतनद्रव्य धर्म, अधर्म, आकाश और कालके भेदसे चार तरहका है, जो चार प्रकारके गति-स्थिति-अवकाश-परिणामादि कार्योंसे अनुमानित किया जाता है। इन छहों द्रव्योंका सप्रमाण समर्थन तत्त्वार्थालङ्कार ( तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ) में किया गया है । तथा इन द्रव्योंकी भूत, भावी और अनन्त अर्थ तथा व्यञ्जन-पर्यायें सामान्यतः निर्बाध आगमप्रमाणसे प्रसिद्ध हैं और प्रत्यक्षतः केवलज्ञानसे गम्य हैं । अतएव न तो सर्वथा द्रव्यैकान्त सिद्ध होता है और न सर्वथा पर्यायैकान्त । और ये समस्त द्रव्य तथा पर्यायें केवलज्ञान में प्रतिभासमान होनेपर भी प्रतिभासमात्रके अन्तर्गत सिद्ध नहीं हो सकती हैं। क्योंकि विषय-विषयीका भेद न होनेपर समस्तके अभावका प्रसंग आवेगा। कारण, बिना विषयका कोई प्रतिभास सम्भव नहीं है और बिना प्रतिभासका कोई विषय व्यवस्थित नहीं होता । तात्पर्य यह कि प्रतिभास और विषय दोनों
1. द 'विरोधात्। 2. द "दचेतनं', स 'दचेतनं द्रव्यं ।
3. मु 'लंकारः' । . 4. मु 'वा'।
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