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आप्तपरोक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ७७ षणभेदेऽपि भेदासम्भवादेकत्वाविरोधात् । न ह्य त्पत्तेः पूर्व घटस्य प्रागभावः पटस्य प्रागभाव इत्यादिविशेषणभेदेऽप्यभावो भिद्यते घटस्य सत्ता पटस्य सत्तेत्यादिविशेषणभेदेऽपि सत्तावत् ।।
६ १७०. ननु प्रागभावस्य नित्यत्वे कार्योत्पत्तिर्न स्यात्, तस्य तत्प्रतिबन्धकत्वात् । तदप्रतिबन्धकत्वे प्रागपि कार्योत्पत्तेः1 कार्यस्यानादित्वप्रसङ्ग इति चेत्, तहि सत्ताया नित्यत्वे कार्यस्थ प्रध्वंसो न स्यात, तस्यास्तत्प्रतिबन्धकत्वात् । तदप्रतिबन्धकत्वे प्रध्वंसात्प्रागपि प्रध्वंसप्रसङ्गात कार्यस्य स्थितिरेव न स्यात् । कार्यसत्ता हि प्रध्वंसात्प्राक् प्रध्वंसस्य प्रतिघातिकेति कार्यस्य स्थितिः सिदध्ये, नान्यथा ।
अनेक अनुत्पन्न कार्योंको अपेक्षा अविनाशी प्रागभावमें विशेषणभेद होनेपर भी भेद नहीं हो सकता है और इसलिये उसके एकपनेका कोई विरोध नहीं है । स्पष्ट है कि उत्पत्तिके पूर्व घटका प्रागभाव, पटका प्रागभाव इत्यादि विशेषणभेद होनेपर भी अभाव ( प्रागभाव ) में कोई भेद नहीं होता। जैसे घटको सत्ता, पटकी सत्ता इत्यादि विशेषणभेद होनेपर भी सत्तामें भेद नहीं होता। तात्पर्य यह कि सत्ताकी तरह प्रागभाव भी नित्य और एक कहा जा सकता है । हम कह सकते हैं कि प्रागभावके विशेषणभूत घटपटादि पदार्थोंके नाश होनेपर भी प्रागभावका न तो नाश होता है और न उसमें अनेकता हो आती है। उक्त विशेषणोंमें ही विनाश और अनेकतादि होते हैं । अतः प्रागभाव एक है।
१७०. वैशेषिक-यदि प्रागभाव नित्य हो तो कार्यको उत्पत्ति नहीं हो सकेगी, क्योंकि वह उसका प्रतिबन्धक ( रोकनेवाला ) है। और यदि उसे कार्योत्पत्तिका प्रतिबन्धक न माना जाय तो कार्योत्पत्तिके पूर्व भी कार्य अनादि हो जायगा ?
जैन---यह दोष तो सनाको नित्य मानने में भी लागू हो सकता है । हम कह सकते हैं कि सत्ता भो यदि नित्य हो तो कार्यका नाश नहीं हो सकेगा, क्योंकि वह उसकी प्रतिबन्धक है । और अगर वह प्रतिबन्धक न हो तो कार्यनाशके पहले भी नाशका प्रसङ्ग आवेगा और उस दशामें कार्यवी स्थिति ( अवस्थान ) ही नहीं बन सकती है। स्पष्ट है कि कार्यको सत्ता नाशके पहले नाशको प्रतिबन्धक है और इस तरह कार्यको स्थिति सिद्ध हो सकती है, अन्यथा नहीं।
1. 'कार्योत्पत्तेः' इति व प्रतो नास्ति ।
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