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कारिका ७७ ]
ईश्वर - परीक्षा
२०३.
श्वरत्वनिश्चयात् । तथा च स एव हि मोक्षमार्गस्य प्रणेता व्यवतिष्ठते, सदेहत्वे धर्मविशेषवत्वे' च सति सर्वविन्नष्टमोहत्वात् । यस्तु न मोक्षमार्गस्य 'मुख्यः प्रणेता स न सदेहो यथा मुक्तात्मा, धर्मविशेषभाग्वा, यथाऽन्तकृत्केवली | नापि सर्वविन्नष्टमोहो यथा रथ्यापुरुषः, सदेहत्वे धर्मविशेषवत्वे च सति सर्वत्रिन्नष्टमोहश्च जिनेश्वरः, तस्मान्मोक्षमार्गस्य प्रणेता व्यवतिष्ठत एव । स्वार्थव्यवसायात्मकज्ञानात्सर्वथाऽर्थान्तरभूतस्तु शिवः सदेहो निर्देहो वा न मोक्षमार्गोपदेशस्य कर्ता युज्यते, [ सर्वदिन्नष्टमोहत्वाभावात् । सर्वविन्नष्टमोहश्चासौ नास्ति ] कर्मभूभृतामभेतृत्वात् । यो यः कर्मभूभृतामभेत्ता स स न सर्वविन्नष्टमोहः; यथाssकाशादिरभव्यो वा संसारी चात्मा, कर्मभूभूतामभेत्ता च शिवः परैरुपेयते, तस्मान्न सर्वविन्नष्टमोह इति साक्षान्मोक्षमार्गोपदेशस्य कर्त्ता न भवेत् । निरस्तं च पूर्वं विस्तरतस्तस्य शश्वत्कर्मभिरस्पृष्टत्वं पुरुष - विशेषस्येत्यलं " विस्तरेण प्रागुक्तार्थस्यैवात्रोपसंहारात् ।
सकते हैं कि 'स्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञानसे कथंचित् अभिन्नरूपसे माना गया पुरुषविशेष जिनेश्वर ही मोक्षमार्गका प्रणेता व्यवस्थित होता है, क्योंकि वह सदेह और धर्मविशेषवाला होकर सर्वज्ञ- वीतराग है । जो मोक्षमार्गका मुख्य प्रणेता नहीं है वह सदेह नहीं है, जैसे मुक्त जीव ( सिद्ध परमेष्ठी ) अथवा धर्मविशेषवाला नहीं है, जैसे अन्तकृत्केवली । और सर्वज्ञ - वीतराग नहीं है, जैसे पागल पुरुष । और सदेह तथा धर्मविशेषवाला होकर सर्वज्ञ - वीतराग जिनेश्वर है, इस कारण वह मोक्षमार्गका प्रणेता अवश्य व्यवस्थित होता है । किन्तु स्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञानसे सर्वथा भिन्न माना गया महेश्वर, चाहे सदेह हो या निर्देह, मोक्षमार्ग के उपदेशका कर्ता व्यवस्थित नहीं होता, क्योंकि वह [ सर्वज्ञ-वीतराग नहीं है तथा सर्वज्ञ - वीतराग इसलिये नहीं कि वह ] कर्मपर्वतोंका अभेदक है । जो जो कर्मपर्वतोंका अभेदक है वह वह सर्वज्ञ वीतराग नहीं है, जैसे आकाशादि अथवा अभव्य और संसारी आत्मा । और कर्मपर्वतोंका अभेदक महेश्वर वैशेषिकद्वारा स्वीकार किया जाता है, इस कारण वह सर्वज्ञ - वीतराग नहीं है । और इसलिये वह साक्षात् मोक्षमार्ग के उपदेशका कर्ता नहीं है । पहले विस्तारसे पुरुषविशेषरूप महेश्वरके सदैव कर्मोंसे रहितपका निराकरण किया जा चुका है, इसलिये इस विषय में और अधिक
है
1. मुस 'शेषत्वे' । 2. व 'त्यलं पुनः ' ।
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