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कारिका ८४] सुगत-परीक्षा
२१९ पपत्तेः । प्रधानं तु मोक्षमार्गस्य प्रणेतृ ततोऽर्थान्तरभूत एवात्मा मुमुक्षुभिः स्तूयते इत्यकिञ्चित्करात्मवाद्येव ब्रयान्न ततोऽन्य इत्यलं प्रसङ्गेन।
[सुगतस्य मोक्षमार्गप्रणेतृत्वाभावप्रतिपादनम् ] १९६. योऽप्याह-माभूत्कपिलो निर्वाणमार्गस्य प्रणेता महेश्वरवत तस्य विचार्यमाणस्य तथा व्यस्थापयितुमशक्तेः। सुगतस्तु निर्वाणमार्गस्योपदेशकोऽस्तु सकलबाधकप्रमाणाभावादिति तमपि निराकर्तुम्पक्रमते
सुगतोऽपि न निर्वाणमार्गस्य प्रतिपादकः । विश्वतत्त्वज्ञताऽपायात्तत्त्वतः कपिलादिवत् ॥ ८४ ॥ ६ १९७. यो यस्तत्त्वतो विश्वतत्त्वज्ञताऽपेतः स स न निर्वाणमार्गस्य
प्रमाणसे सिद्ध होता है। किन्तु जो यह कहते हैं कि प्रधान मोक्षमार्गका उपदेशक है और उससे भिन्न आत्माको मुमुक्षु स्तुति करते हैं' वे आत्माको अकिञ्चित्कर कहनेवालों-कर्ता आदि स्वीकार न करनेवालों ( सांख्यों ) के सिवाय अन्य कोई नहीं हैं अर्थात् वैसा प्रतिपादन सांख्य हो कर सकते हैं, अन्य नहीं। इसप्रकार सांख्य मतका संक्षिप्त विवेचन करके उसे समाप्त किया जाता है-उसका और विस्तार नहीं किया जाता।
[सुगत-परीक्षा ] ६ १९६. जो कहते हैं कि कपिल मोक्षमार्गका उपदेशक न हो, जैसे महेश्वर; क्योंकि विचार करनेपर उसके मोक्षमार्गोपदेशकपना व्यवस्थित नहीं होता। लेकिन सुगत मोक्षमार्गका उपदेशक हो, कारण उसके कोई भी बाधकप्रमाण नहीं है। उनके भी इस कथनको निराकरण करनेके लिये प्रस्तुत प्रकरण प्रारम्भ किया जाता है
'सुगत भी मोक्षमार्गका प्रतिपादक नहीं है, क्योंकि उसके परमार्थतः सर्वज्ञताका अभाव है, जैसे कपिलादिक ।'
६ १९.७. जो जो परमार्थतः सर्वज्ञतारहित है वह वह मोक्षमार्गका
1. द 'स्तुत्योपपत्तेः'। 2. म स 'निर्वाणस्य' । स चायुक्तः । मूले द प्रतेः पाठो निक्षिप्तः । 3. मु स 'मार्गोपदेश'।
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