________________
कारिका ८६] सुगत-परीक्षा
२५१प्रतिभासते', 'रूपं प्रतिभासते' इत्यन्तर्बहिर्वस्तुनः स्वातन्त्र्येण कर्तृतामनुभवतःप्रतिभासनक्रियाधिकरणस्य प्रतिभासमानस्य निराकर्तुं मशक्तेः । ततो नासिद्धं साधनम्, यतः पुरुषाद्वैतं न साधयेत् । नापि विरुद्धम् , परतः प्रतिभासमानत्वाप्रतीतेः, कस्यचित्प्रतिभासाबहिर्भावासाधनात् ।
६२२८. एतेन परोक्षज्ञानवादिनः संवेदनस्य स्वयं प्रतिभा:मानत्वमसिद्धमाचक्षाणाः सकलज्ञेयस्य ज्ञानस्य च ज्ञानात्प्रतिभासमानत्वात्सा. धनस्य विरुद्धतामभिदधाना: प्रतिध्वस्ताः, 'ज्ञानं प्रकाशते' 'बहिर्वस्तु प्रकाशते' इति प्रतीत्या स्वयं प्रतिभासमानत्वस्य साधनस्य व्यव. स्थापनात्।
$ २२९. ये त्वात्मा स्वयं प्रकाशते फलज्ञानं चेत्यावेदयन्ति, तेषामात्मनि फलज्ञाने वा स्वयं प्रतिभासमानत्वं सिद्धं सर्वस्य वस्तुनः प्रतिभास. मानत्वं साधयत्येव । तथा हि-विवादाध्यासितं वस्तु स्वयं प्रतिभासते,
अत एव 'सुख प्रतिभासित होता है', 'रूप प्रतिभासित होता है' इस तरह प्रतिभासमान अन्तरंग (ज्ञान) और बहिरंग (रूपादि) वस्तुका, जो प्रतिभासन क्रिया का आश्रय है तथा स्वतंत्रताके साथ कर्तापनेका अनुभव करनेवाली है, निराकरण नहीं किया जा सकता है। अतः स्वतः प्रतिभासमानपना हेतु असिद्ध नहीं है, जिससे वह पुरुषाद्वैतको सिद्ध न करे । तथा विरुद्ध भी नहीं है, क्योंकि वह परसे प्रतिभासमान प्रतीत नहीं होता और कोई प्रतिभाससे बाहर सिद्ध नहीं होता।
२२८. इस कथनसे संवेदनके स्वयं प्रतिभासमानपना असिद्ध बतलानेवाले तथा समस्त ज्ञेय और ज्ञान अन्य ज्ञानसे प्रतिभासमान होनेसे हेतुको विरुद्ध कहनेवाले परोक्षज्ञानवादी मीमांसक निराकृत हो जाते हैं, 'क्योंकि ज्ञान प्रकाशित होता है', 'बाह्य वस्तु प्रकाशित होती है' इस प्रकारको प्रतीति होनेसे स्वयं प्रतिभासमानपना हेतु व्यवस्थित होता है । अतएव वह न असिद्ध है और न विरुद्ध ।
२२९. जो कहते हैं कि 'आत्मा स्वयं प्रकाशित होता है और फलज्ञान भी स्वयं प्रकाशित होता है' उनके आत्मा अथवा फलज्ञानमें स्वयं प्रतिभासमानपना सिद्ध है। अतएव वह सम्पूर्ण वस्तुओंके भी स्वयं प्रतिभासमानपना अवश्य सिद्ध करता है । वह इस प्रकार से है
1. व 'बहिर्भावाभावसाधना' । 2. व 'प्रतिभासते'।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org