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कारिका ७७] ईश्वर-परीक्षा
१७९ $ १६६. किञ्च, घटत्वादि सामान्यस्य घटादिव्यक्तिष्वभिव्यक्तस्य तदन्तराले चानभिव्यक्तस्य घटप्रत्ययहेतुत्वाहेतुत्वे स्वयमुररीकुर्वाणः कथं न घटस्य स्वव्यञ्जकदेशेऽभिव्यक्तस्यान्यत्र चानभिव्यक्तस्य घटप्रत्ययहेतुत्वाहेतुत्वे नाभ्युपगच्छतीति स्वेच्छाकारी।
१६७. स्यान्मतम्-नाना घटः, सकृभिन्नदेशतयोपलभ्यमानत्वात्, घटकटमुकुटादिपदार्थान्तरवदिति; हि नाना सत्ता, युगपद्बाधकाभावे सति भिन्नदेशद्रव्यादिषपलभ्यमानत्वात्तद्वदिति दर्शनान्तरमायातम, न्यायस्य समानत्वात । न हि विभिन्नप्रदेशेष घटपटादिष युगपत्सत्तो पलम्भोऽसिद्धः, सन्तोऽमी घटपटादय इति प्रतीतेरबाधितत्वात् ।
होना और कहीं इष्ट प्रत्ययका होना बन सकता है--कोई विरोध नहीं है।
१६६. दूसरे, जब आप यह स्वीकार करते हैं कि घटत्व' आदि सामान्य घटादिक व्यक्तियोंमें अभिव्यक्त ( प्रकट ) है और इसलिये उनमें घटज्ञान होता है। किन्तु घटादिव्यक्तियोंके अन्तराल ( बीच ) में वह अनभिव्यक्त है, अतः वहाँ घटज्ञान उत्पन्न नहीं होता, तो आप इस बातको भी क्यों स्वीकार नहीं करते कि घट अपने अभिव्यञ्जकवाले देशमें अभिव्यक्त है, इसलिये वहाँ तो घटका ज्ञान होता है और अभिव्यञ्जकशुन्य स्थानमें वह अनभिव्यक्त है, अतः वहाँ घटका ज्ञान नहीं होता। यदि ऐसा स्वीकार न करें तो आपको स्वेच्छाकारिता क्यों नहीं कहलाई जायगी।
$ १६७ वैशेषिक-हमारा अभिप्राय यह है कि 'घड़ा अनेक हैं, क्योंकि एक-साथ भिन्न देशोंमें उपलब्ध होते हैं, जैसे वस्त्र, चटाई, मुकुट आदि दूसरे पदार्थ ।' अतः घड़ा एक नहीं हो सकता है ?
जैन-यदि ऐसा है तो सत्ताको भी नाना मानिये। हम प्रमाणित करेंगे कि 'सत्ता अनेक है, क्योंकि एक-साथ बिना बाधकके भिन्न देशोंमें उपलब्ध होती है, जैसे वस्त्र, चटाई, मुकुट आदि दूसरे पदार्थ ।' अतः सत्ता भी एक नहीं हो सकती और इसलिये यह अन्य मत प्राप्त होता है, क्योंकि न्याय तो दोनों जगह एक-सा है। यह भी नहीं कि भिन्न देशवर्ती घड़ा, वस्त्र आदि पदार्थों में एक-साथ सत्ताका उपलम्भ असिद्ध हो, क्योंकि
1. मु स प 'घटादि'। 2. द 'घटव्यक्ति ' । 3. व 'वानभि-'। 4. मु स प 'वो'। 5. मु स प 'घटादय' ।
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