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कारिका ५०, ५१] ईश्वर-परीक्षा
- १५७ तत्र युतप्रत्यय इति चेत्, न; वाताऽऽतपादिषु युतप्रत्ययानुत्पत्तिप्रसङ्गात् । तेषां स्वावयवेषु भिन्नेषु देशेषु' वृत्तेस्तत्र युतप्रत्ययः, इति चेत्, किमेवं तन्तुपटादिषु पटरूपादिषु च युतप्रत्ययः प्रतिषिध्यते ?, स्वाश्रयेषु भिन्नेष वृत्तविशेषात् । तथा च न तेषामयुतसिद्धिः। ततो न युतप्रत्ययहेतुत्वेन युतसिद्धिय॑वतिष्ठते । तदव्यवस्थानाच्च किं स्यात् ? इत्याह
[ युतसिद्ध्यभावेऽयुतसिद्धिरपि नोपपद्यते इति कथनम् ] ततो नाऽयुतसिद्धिः स्यादित्यसिद्धं विशेषगम् । हेतोविपक्षतस्तावद् व्यवच्छेदं न साधयेत् ॥५०॥ सिद्धेऽपि समवायस्य समवायिषु दर्शनात् ।
इहेदमिति संवित्तेः साधनं व्यभिचारि तत् ॥५१॥ वैशेषिक-विभुद्रव्य आदिकोंमें देशभेद न होनेसे उनमें पृथक् प्रत्यय नहीं हो सकता है और इसलिये उपयुक्त दोष नहीं है ? __ जैन-नहीं, क्योंकि आपके इस कथनसे हवा और धूप आदि अभिन्न देशवर्ती पदार्थों में पृथक् प्रत्यय उत्पन्न नहीं हो सकेगा।
वैशेषिक-हवा आदि तो अपने भिन्न देशरूप अवयवों में रहते हैं और इसलिये उनमें पृथक् प्रत्यय बन जायगा ?
जैन-इस प्रकार फिर आप तन्तु-पटादिकोंमें और पट-रूपादिकोंमें पृथक् प्रत्ययका प्रतिषेध क्यों करते हैं ? क्योंकि वे भी अपने भिन्न आश्रयों में रहते हैं। अतः हवा आदिकोंमें और इनमें कुछ भी विशेषता नहीं है। और इसलिये उनके अयुतसिद्धि सिद्ध नहीं होती। अतएव 'जो पृथक् प्रत्ययमें कारण है वह युतसिद्धि है' यह युतसिद्धि-लक्षण भी व्यवस्थित नहीं हो सका। और जब इस तरह युतसिद्धि नहीं व्यवस्थित हो सकी तो उस हालत में क्या होगा? इसे आगे बतलाते हैं___ 'चूंकि युतसिद्धिकी व्यवस्था नहीं होती है, अतः उसके अभावरूप अयतसिद्धि नहीं बनती है। अतः हेतुगत 'अयुतसिद्धत्व' विशेषण असिद्ध है और इसलिये वह हेतुकी विपक्षसे व्यावृत्ति नहीं करा सकता है। अगर किसी प्रकार उक्त विशेषण सिद्ध भी हो जाय तो भी समवायिओंमें समवायका (इन समवायिओं में समवाय है, इस प्रकारका) 'इहेदं' प्रत्यय देखा जाता है । अतः उसके साथ हेतु व्यभिचारी है-अनैकान्तिक हेत्वाभास है।'
1. व 'देशेषु' नास्ति । 'वृत्तेः' इत्यत्र 'प्रवृत्तेः' इति च पाठः । 2. द 'आश्रयेषु प्रवृत्तेरविशेषात्' इति पाठः ।
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