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कारिका ५६ ] ईश्वर-परीक्षा
१६१ तथा चापरापरविशेषणविशेष्यभावपरिकल्पनायामनवस्थाख्या'बाधा तदवस्थैव। ततस्तया सबाधादिहेदमिति प्रत्ययाद्विशेषणविशेष्यभावोऽपि न सिद्ध्येत्, इति कुतः समवायप्रतिनियमः क्वचिदेव समवायिषु परेषां स्यात् ?
विशेषणविशेषष्यत्वप्रत्ययादवगम्यते ।
विशेषणविशेष्यत्वमित्यप्येतेन दूषितम् ॥५६॥ $ १४७. यथेह समवायिषु समवाय इतीहेदंप्रत्ययादनवस्थया बाध्यमानात् समवायवद्विशेषणविशेष्यभावो न सिद्ध्येदिति, तथा विशेषणविशेष्यत्वप्रत्ययादप्यनवस्थया' बाध्यमानत्वाविशेषात्ततोऽनेनेहेदंप्रत्ययदूषणेन विशेषणविशेष्यत्वप्रत्ययोऽपि दूषित एव । तेनैव च तदूषणेन विशेषणविशेष्यत्वं सर्वत्र दूषितमवगम्यताम् ।
[ वैशेषिकाणां जैनापादितानवस्थापरिहारस्य निराकरणम् ] १४८. अत्रानवस्थापरिहारं परेषामाशङ्कच निराचष्टेमानने में) भी मौजद है : अतः इस अनवस्थारूप बाधासे सहित होने के कारण 'इहेदं' ( इसमें यह ) प्रत्ययसे विशेषण-विशेष्यभाव सम्बन्ध भी सिद्ध नहीं हो सकता है। तब बतलाइये, किन्हीं समवायिओंमें ही समवायका प्रतिनियम आपके यहाँ कैसे बन सकता है ? अर्थात् नहीं बन सकता ।
'अगर कहा जाय कि विशेषण-विशेष्यभाव विशेषण-विशेष्यभावज्ञानसे जाना जाता है तो वह ज्ञान भो उपयुक्त प्रकारसे दूषित है-दोषयुक्त है।'
$ १४७. जिस प्रकार 'इन समवायिओंमें समवाय है' इस अनवस्थाबाधित प्रत्ययसे समवायकी तरह विशेषण-विशेष्यभाव सिद्ध नहीं होता उसी प्रकार विशेषण-विशेष्यभाव प्रत्ययसे भी वह सिद्ध नहीं होता, क्योंकि यह प्रत्यय भी पूर्ववत् अनवस्था-बाधित है। अतः इस 'इहेदं' प्रत्ययके दूषणद्वारा विशेषण-विशेष्यभाव प्रत्यय भी दूषित है। और उसके दूषित होनेसे विशेषणविशेष्यभाव सब जगह दूषित समझना चाहिये ।
$ १४८. आगे वैशेषिक उक्त अनवस्था दोषका परिहार करते हैं और आचार्य उसका उल्लेख करके निराकरण करते हैं
1. म 'स्था बाधा'। 2. स प्रतौ 'समवायिषु' नास्ति। 3. स 'स्थायाः'।
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