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कारिका ९]
ईश्वर-परीक्षा व्यतिरेकाननुविधायिषु न कुबिन्दादिनिमित्तकत्वम् । बुद्धिमदन्वयव्यतिरेकानुपलम्भश्च तन्वादिषु । तस्मान्न बुद्धिमन्निमित्तकत्वमिति व्यापकानुपलम्भः, तत्कारणकत्वस्य तदन्वयव्यतिरेकोपलम्भेन व्याप्तत्वात् कुलालकारणकस्य घटादेः कुलालान्वयव्यतिरेकोपलम्भप्रसिद्धः। सर्वत्र बाधकाभावात् तस्य तद्व्यापकत्वव्यवस्थानात् । न चायमसिद्धः, तन्वादीनामीश्वरव्यतिरेकानुपलम्भस्य प्रमाणसिद्धत्वात्। स हि न तावत्कालव्यतिरेकः, शाश्वतिकत्वादीश्वरस्य कदाचिदभावासम्भवात् । नापि देशव्यतिरेकः, तस्य विभत्वेन क्वचिदभावानुपपत्तेरीश्वराभावे कदाचित्क्वचित्तन्वादिकार्याभावानिश्चयात् ।
हैं। और बुद्धिमानिमित्तकारणके अन्वय-व्यतिरेकका अभाव शरीरादिकके साथ है, इस कारण शरीरादिक बुद्धिमानिमित्तकारणजन्य नहीं हैं।' इस प्रकार व्यापकानुपलम्भ सिद्ध होता है। अर्थात् प्रकृत अनुमानमें शरीरादिक कार्योंके साथ बुद्धिमान्निमित्तकारणईश्वरका अन्वय-व्यतिरेक नहीं बनता है। और यह निश्चित है कि जो जिसका कारण होता है उसका उसके साथ अन्वय-व्यतिरेक अवश्य पाया जाता है। जैसे कुम्हारसे उत्पन्न होनेवाले घड़ा आदिकमें कुम्हारका अन्वय-व्यतिरेक स्पष्टतः प्रसिद्ध है । सब जगह बाधकोंके अभावसे अन्वय-व्यतिरेक कार्यके व्यापक व्यवस्थित होते हैं। प्रकृतमें व्यापकानुपलम्भ असिद्ध नहीं है, क्योंकि शरीरादिकोंमें ईश्वरके व्यतिरेकका अभाव प्रमाणसे सिद्ध है। वह व्यतिरेक दो प्रकारका है-१) कालव्यतिरेक और (२) देशव्यतिरेक । सो प्रकृतमें न तो कालव्यतिरेक बनता है क्योंकि ईश्वर सदा रहनेवाला अर्थात् नित्य होनेसे किसी कालमें उसका अभाव नहीं है और न देशव्यतिरेक बनता है, क्योंकि वह विभु है अतः उसका किसी देशमें भी अभाव नहीं है। ऐसा नहीं है कि, अमुक काल अथवा अमुक देशमें ईश्वरके न होनेसे शरीरादिक कार्य नहीं हुआ और इसलिये किसी काल अथवा किसी देश में ईश्वरके अभावसे शरीरादिक कार्योंके अभावका निश्चय करना असम्भव है। अतः व्यतिरेकका अभावरूप व्यापकानुपलम्भ सुनिश्चित है । तात्पर्य यह कि जब ईश्वर नित्य और व्यापक है तो किसी काल अथवा देशमें ईश्वरका अभाव बतलाकर शरीरादिक कार्योंका अभाव प्रदर्शित करना रूप व्यतिरेक नहीं बन सकता है । अतएव व्यतिरेकाभावरूप व्यापकानुपलम्भसे पक्ष बाधित है और 'कार्यत्व' हेतु कालात्ययापदिष्ट ( बाधितविषय ) नामका हेत्वाभास है।
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