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कारिका १२] ईश्वर-परीक्षा मित्तत्व'योगादीश्वरस्य धर्मज्ञानवैराग्यश्वर्ययोगात् शश्वत्क्लेशकर्मविपाकाशयरपरामृष्टत्वाच्च सदैव मुक्तत्वं सदैवेश्वरत्वं ब्रुवाणो नैकान्तमभ्यनुजानातीति निवेदितं प्रतिपत्तव्यम् । कथञ्चिन्मुक्तत्वस्य च प्रसिद्धः । ततोऽनेकान्तात्मकत्वप्रसंगपरिजिहीर्षुणा सर्वथा मुक्त एवेश्वरः प्रवक्तव्यः। तथा च सर्वथा निःकर्मत्वं तस्योररीकर्तव्यमिति नासिद्ध साधनम् । नाप्यनैकान्तिकम्, विपक्षे वृत्त्यभावात् । क्वचिदैश्वर्ययोगिनि 4त्रिदशेश्वरेत्यादौ सर्वथा निःकर्मत्वस्य वृत्त्यसिद्धेः । तत एव न विरुद्धम्, नापि कालात्ययापदिष्टम्, पक्षस्य प्रमाणेनाबाधनात् । न हि प्रत्यक्षतोडस्मदादिभिरैश्वर्ययोगी कश्चिन्निःकर्मोपलभ्यते यतः प्रत्यक्षबाधितः पक्षः स्यात् । नाप्यनुमानतस्तत्र सर्वस्यानुमानस्य व्यापकानुपलम्भन बाधितपक्षस्य कालात्ययापदिष्टत्वसाधनात् । नाप्यागमतस्तस्योपलम्भः, तत्र
इस उपयुक्त कथनसे जो ईश्वरके अनादिबुद्धिमन्निमित्तकारणतासे तथा धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्यके सम्बन्धसे और सदा क्लेश, कर्म, विपाक, आशयरहिततासे सदा ही मुक्तपना तथा सदा ही ईश्वरपना वणित करते हैं उनका एकान्त नहीं रहता-अनेकान्तता प्रसक्त होती है यह प्रतिपादित समझना चाहिये, क्योंकि ईश्वरके कथंचित् मुक्तपना और कथंचित अमुक्तपना दोनों स्वभाव सिद्ध होते हैं। अतः इस प्रसक्त हुई अनेकान्तताके दूर करने के लिए आपको सर्वथा मुक्त ही ईश्वर कहना चाहिए और तब उसे सर्वथा कर्मरहित ही स्वीकार करना चाहिये, अतः हमारा उक्त साधन असिद्ध नहीं है और न अनेकान्तिक भी है, क्योंकि वह विपक्ष(ऐश्वर्ययोगी व्यक्ति ) में-नहीं रहता है। जो ऐश्वर्यसम्पन्न इन्द्रादिक हैं वे सर्वथा कर्मरहित नहीं हैं-उनके कर्म मौजूद हैं। अतएव विरुद्ध भी नहीं है । न कालात्ययापदिष्ट भी है क्योंकि पक्ष प्रत्यक्षादि किसी भी प्रमाणसे बाधित नहीं है। प्रत्यक्षसे तो वह बाधित है नहीं, क्योंकि हमें ऐसा कोई भी व्यक्ति उपलब्ध नहीं होता जो ऐश्वर्यसे सम्पन्न हो और कर्मरहित हो। अनुमानसे भी वह बाधित नहीं है, क्योंकि उक्त प्रकारके व्यक्तिको सिद्ध करनेवाले सभी अनुमान, उनके पक्ष व्यापकानूपलम्भसे बाधित होनेके कारण, कालात्ययापदिष्ट हैं। आगमसे भी उक्त प्रकारका
1. द 'बुद्धिमत्वयोगा-'। 2. द 'योगादीश्वरस्य शश्वत्' । 3. मु 'वृत्त्यसिद्धेः'। 4. द 'त्रिदशपत्यादौ'।
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