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कारिका ३५ ] ईश्वर-परीक्षा
१०५ षगुणत्वाच्च साधनवैकल्यासम्भवात् । ततोऽस्माद्धेतोरीश्वरज्ञानस्य सिद्धं प्रादेशिकत्वम् । ततश्चाव्यापि तदिष्टं यदि वैशेषिकैस्तदा कथं सकृत्सर्वत्र तन्वादिकार्याणामुत्पत्तिरीश्वरज्ञानाद् घटते। तद्धि निमित्तकारणं सर्वकार्योत्पत्तौ सर्वत्रासन्निहितमपि कथमुपपद्येत ? कालादेापिन एव युगपत् सर्वत्र कार्योत्पत्तौ निमित्तकारणत्वप्रसिद्धः । 'विभोरीश्वरस्य निमित्तकारणत्ववचनाददोष इति चेत्, न; तस्य यत्र प्रदेशेषु बुद्धिस्तत्रैव निमित्तकारणत्वोपपत्तेः। बुद्धिशून्येऽपि प्रदेशान्तरे तस्य निमितकारणत्वे न तत्र कार्याणां बुद्धिमनिमित्तत्वं सिद्ध्येत् । तथा च व्यर्थ बुद्धिमनिमित्तत्वसाधनम्, सर्वत्र कार्याणां बुद्धिमदभावेऽपि भावापत्तेः । न चैवं कार्यत्वादयो हेतवो गमकाः स्युः, बुद्धिशून्येश्वरप्रदेशत्तिभिर बुद्धिमनिमित्तैः कार्यादिभिर्व्यभिचारात् । ततस्तेषां बुद्धिमन्निमित्तत्वासिद्धेः। है और महेश्वरका वह विशेषगुण है, इसलिये साधनविकल भी नहीं है । अतः प्रस्तुत हेतु ( विभुद्रव्यविशेषगुणपना ) से ईश्वरज्ञानके प्रादेशिकपना सिद्ध है और उससे ईश्वरका ज्ञान अव्यापक सिद्ध हो जाता है ।
जैन-यदि आप ईश्वरज्ञानको अव्यापक मानते हैं तो एक-साथ सब जगह शरीरादिकार्यों की उत्पत्ति अव्यापि-एकदेशस्थित ईश्वरज्ञानसे कैसे सम्भव है ? अर्थात् नहीं। दूसरी बात यह है कि समस्त कार्योंकी उत्पत्तिमें सब जगह मौजूद नहीं रहेगा तब वह निमित्तकारण भी कैसे बन सकेगा? कालादिक पदार्थ जब व्यापक हैं तभी वे सब जगहके कार्योंकी उत्पत्तिमें निमित्तकारण हैं। यदि कहा जाय कि विभु महेश्वरको निमित्तकारण कहनेसे यह दोष नहीं है तो यह कथन भी ठोक नहीं है, क्योंकि महेश्वरकी जिन जगहोंमें बद्धि होगी उन्हीं जगहोंमें वह निमित्तकारण सिद्ध होगा। जहाँ महेश्वरको बुद्धि नहीं है वहाँ भी यदि उसे निमित्तकारण कहा जाय तो वहाँके कार्य बुद्धिमान् निमित्तकारणजन्य सिद्ध नहीं हो सकेंगे और इसलिये उन्हें बुद्धिमान् निमित्तकारणजन्य सिद्ध करना व्यर्थ है क्योंकि सब जगह बुद्धिमान्के अभावमें भी कार्य उत्पन्न हो सकते हैं । और इस प्रकार कार्यात्वादिक हेतु साध्यके साधक नहीं हैं। कारण, जिन जगहोंमें बुद्धिसे रहित केवल ईश्वर है वहाँ वगैर बुद्धिसे
1. मु स प 'विभोरीश्वरस्य निमित्तकारणत्वप्रसिद्ध' इत्यधिकः पाठः । 2. द 'बुद्धिमदभावापत्तः' इति पाठः । 3. द 'वत्तिभिर्व्यभिचारात्' इति पाठः । तत्र 'अबुद्धिमन्निमित्त कार्या
दिभिः' इति पाठो नास्ति ।
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