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कारिका ९] ईश्वर-परीक्षा न्दान्वयव्यतिरेकाभ्यामपि तदुपभोक्तजनादृष्टान्वयव्यतिरेकाभ्यामिवेति सुप्रतीतम् ।
६३. ननु सर्वकार्योत्पत्तौ दिक्कालाकाशादिसामग्र्यन्वयव्यतिरेकानुविधानवदीश्वरादिसामग्रयन्वयव्यतिरेकानुविधानस्य सिद्धेनं व्यापकानुपलम्भः सिद्ध इति चेत्, न; दिक्कालाकाशादीनामपि नित्यसर्वगतनिरवयवत्वे क्वचिदन्वयव्यतिरेकानुविधानायोगादुदाहरणवैषम्यात् । तेषामपि हि परिणामित्वे सप्रदेशत्वे च परमार्थतः स्वकार्योत्पत्तौ निमित्तस्वसिद्धेः।
६४. नन्वेवमपीश्वरस्यापि बुद्ध्यादिपरिणामैः स्वतोऽर्थान्तरभूतैः परिणामित्वात्सकृत्सर्वमूर्तिमद्रव्यसंयोगनिबन्धनप्रदेशसिद्धेश्च तन्वादिकार्योत्पत्तौ निमित्तकारणत्वं युक्तं तदन्वयव्यतिरेकानुविधानस्य तन्वाउस वस्त्रको ओढ़ने-पहिरनेवाले प्राणियोंके अदृष्ट ( भाग्य -के अन्वय और व्यतिरेकद्वारा भी जैसे उस वस्त्रकी उत्पत्ति सूप्रतीत होती है। अतः सामग्रोके प्रत्येक अंशका अन्त्रय और व्यतिरेक कार्योत्पत्तिमें प्रयोजक है और इसलिये ईश्वरको शरीरादि कार्योत्पत्तिमें कारण माननेपर उसका अन्वय-व्यतिरेक भी ढंढ़ना आवश्यक है जो कि प्रकृतमें नहीं है। अतएव व्यापकानुपलम्भ सुप्रसिद्ध है।
६३. शङ्का-जिस प्रकार समस्त कार्योंको उत्पत्तिमें दिशा, काल, . आकाश आदिक सामग्रोका अन्वय और व्यतिरेक विद्यमान है उसी प्रकार ईश्वरादिक सामग्रीका अन्वय और व्यतिरेक भी सिद्ध है ?
समाधान-नहों; दिशा, काल, आकाशादिकको नित्य, व्यापक और निरवयव ( निरंश-प्रदेशभेदरहित ) माननेपर उनका भी अन्वय और व्यतिरेक ( देशव्यतिरेक और कालव्यतिरेक ) नहीं बन सकता है । अतः प्रकृतमें उनका उदाहरण प्रस्तुत करना विषम उदाहरण है। वास्तवमें वे भी जब परिणामी और सप्रदेशी माने जाते हैं तभी उन्हें अपने कार्यकी उत्पत्तिमें निमित्त कहा गया है।
$ ६४. शङ्का-इसी प्रकार ईश्वर भी अपने भिन्नभूत परिणामोंसे परिणामी तथा एक-साथ समस्त मूर्तिमान् द्रव्योंके संयोगमें कारणीभूत प्रदेशोंसे सप्रदेशी सिद्ध है और इसलिये उसे भी कालादिककी तरह शरीरादिक कार्योंकी उत्पत्ति में निमित्तकारण मानना युक्त है क्योंकि उसके
1. प 'प्रदशत्वे'। 2. प 'नन्वेवमीश्वर' ।
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