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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका १२ च्छाप्रयत्न निबन्धनमेव कार्यकरणमनुमन्तव्यम् । तदस्ति च महेश्वरे ज्ञानेच्छाप्रयत्नत्रयम्, ततोऽसौ मोक्षमार्गप्रणयनं कायादिकार्यवत् करोत्येव विरोधाभावादिति कश्चित्; सोऽपि न युक्तवादो; विचारासहत्वात्, सदा कर्मभिरस्पृष्टस्य क्वचिदिच्छाप्रयत्नयोरयोगात् । तदाह
[ अकर्मणः महेश्वरस्येच्छाप्रयत्नशक्त्योरभावप्रतिपादनम् ] न चेच्छाशक्तिरीशस्य कर्माभावेऽपि युज्यते । तदिच्छा वाऽनभिव्यक्ता क्रियाहेतुः कुतोऽज्ञवत् ॥१२॥ $ ७२. न हि कुम्भकारस्येच्छाप्रयत्नौ कुम्भाधुत्पत्तौ निःकर्मणः प्रतीतौ, सकर्मण एव तस्य तत्प्रसिद्धः। यदि पुनः संसारिणः कुम्भकारस्य कर्मनिमित्तेच्छा सिद्धा सदामुक्तस्य तु कर्माऽभावेऽपीच्छाशक्तिः
अतः कार्यका होना तत्त्वज्ञान, इच्छा और प्रयत्न इन तीनोंके निमित्तसे ही मानना चाहिये । और ये तीनों ज्ञान, इच्छा और प्रयत्न महेश्वर में विद्यमान हैं। अतः वह शरीरादि कार्यकी तरह मोक्षमार्गका प्रणयन भी अवश्य करता है क्योंकि उसमें कोई विरोध नहीं है ?
$ समाधान—यह कथन भी युक्तिपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह विचारसह नहीं है अर्थात् विचार करनेपर खण्डित हो जाता है। कारण, जो सदा कर्मों से अस्पृष्ट ( रहित ) है उसके इच्छा और प्रयत्न असम्भव हैंअर्थात् नहीं हो सकते हैं । इसी बातको आचार्य महोदय आगे कहते हैं:___ 'ईश्वरके कर्मके अभावमें इच्छाशक्तिको मानना युक्त नहीं है। कारण, वह इच्छा अभिव्यक्त तो बनती नहीं, क्योंकि उसकी अभिव्यक्ति करनेवाला कोई कर्मादि नहीं है। और यदि अनभिव्यक्त है तो वह अज्ञ प्राणोकी तरह कार्योत्पत्तिमें कारण कैसे हो सकती है ? अर्थात् नहीं हो सकती।
७२. यथार्थतः घटादिकके बनानेमें कुम्हारके जो इच्छा और प्रयत्न हैं वे उसके कर्मके बिना प्रतीत नहीं होते, कर्मसहित कुम्हारके हो वे प्रतीत होते हैं। यदि कहें कि, कुम्हार संसारी है और इसलिए उसके तो कर्मनिमित्तक इच्छा है, किन्तु ईश्वर सदामुक्त है-वह संसारी नहीं है इसलिये उसके कर्मके बिना भो इच्छाशक्ति सम्भव है। हाँ, जो उपायसे मुक्त होते
1. मु 'प्रयत्ने'। 2. मु 'महेश्वरज्ञाने'।
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