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कारिका ३] स्तोत्रोक्तविशेषणप्रयोजन
मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥ ३ ॥ $ १६. अत्र मोक्षमार्गादिपदानामर्थः पुरस्ताद्वक्ष्यते। वाक्यार्थस्तूच्यते । मोक्षमार्गस्य नेतारं कर्मभूभृतां भेत्तारं विश्वतत्त्वानां वन्दे, तद्गुणलब्थित्वात् । यो यद्गुणलब्ध्यर्थी स तं वन्दमानो दृष्टः, यथा 'शस्त्रविद्यादिगुणलब्ध्यर्थी शस्त्रविद्यादिविदं तत्प्रणेतारं च । तथा चाहं मोक्षमार्गप्रणेतृत्व-कर्मभूभभेतृत्व-विश्वतत्त्वज्ञातत्वगणलब्ध्यर्थी । तस्मान्मोक्षमार्गस्य नेतारं कर्मभूभृतां भेत्तारं विश्वतत्त्वानां ज्ञातारं वन्दे इति शास्त्रकारः शास्त्रप्रारम्भे श्रोता तस्य व्याख्याता वा भगवन्तं परमेष्ठिनं परमपरं वा मोक्षमार्गप्रणेतृत्वादिभिगुणैः संस्तौति, तत्प्रसादाच्छेयोमार्ग
समाधान-वह गुणस्तवन यह है
मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् ।
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥३॥ अर्थात्-जो मोक्षमार्ग ( सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र) का उपदेष्टा है, कर्मपर्वतोंका प्रभेदक है और समस्त पदार्थों का ज्ञाता है उसको मैं इन गुणोंकी प्राप्तिके लिये वन्दना करता हूँ।
१६. इस गुण-स्तोत्रमें आये हुए मोक्षमार्गादि पदोंका अर्थ आगे कहा जावेगा । यहाँ सिर्फ उसका वाक्यार्थ प्रकट किया जाता है-'मोक्षमार्गके नेता, कर्मभूभृतोंके भेत्ता और विश्वतत्त्वोंके ज्ञाताको मैं वन्दना करता हूँ क्योंकि उनके इन गुणोंको प्राप्त करनेका अभिलाषी हूँ, जो जिसके गणोंको प्राप्त करनेका अभिलाषी होता है वह उसको वन्दना करता हआ देखा गया है। जैसे शस्त्रविद्या आदि गुणोंका अभिलाषी शस्त्रविद्या आदिके ज्ञाता और उस विद्यादिके आविष्कर्ताको वन्दना करता हुआ पाया जाता है । और मोक्षमार्गप्रणेतृत्व, कर्मभूभृद्भे त्व और विश्वतत्त्वज्ञातृत्व इन तीन गुणोंको प्राप्त करनेका अभिलाषी मैं हूँ, इसलिए मोक्षमार्गके नेता, कर्मपर्वतोंके भेत्ता और विश्वतत्त्वोंके ज्ञाताको वन्दना करता हूँ' इस तरह ग्रन्थके आरम्भमें ग्रन्थकार, श्रोता और उस ग्रन्थके व्याख्यानकर्तागण भगवान् पर और अपर परमेष्ठियोंकी उक्त गुणोंद्वारा स्तुति-वन्दना करते हैं क्योंकि उससे उन्हें श्रेयोमार्गकी सम्यक्प्राप्ति और १. अने।
1., 2. म 'शास्त्र' ।
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