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कारिका ५ ] ईश्वर-परीक्षा
३५ दिभेदप्रभेदानां वा संगृहीतुमशक्यत्वात् । तत्र संकेतस्य कर्तुमशक्यत्वादस्मदादेस्तदप्रत्यक्षत्वात्। क्रमेण युगपद्वा अननुमेयत्वाच्च। न चाप्रत्यक्षेननुमेये वा सर्वथाऽप्यप्रतिपन्नेऽर्थे संकेतः शक्यक्रियोऽस्ति । सर्वज्ञस्तत्र संकेतयितु समर्थोऽपि नासर्वज्ञान संकेतं ग्राहयितुमलमिति कुतः संकेतः ? न चासंकेतितेऽर्थे शब्दः प्रवर्तते यतः संगृह्यन्तेऽनन्ताः पदार्थाः येन शब्देन स शब्दात्मा संग्रहः सिद्ध्येत् ।
३८. माभूच्छब्दात्मकः संग्रहः प्रत्ययात्मकस्त्वस्तु, संगृह्यन्तेऽर्था येन प्रत्ययेन स संग्रह इति व्याख्यानात्तेन तेषां संग्रहीतु शक्यत्वादिति चेत्, कुतः पुनरसौ प्रत्ययः ? प्रत्यक्षादनुमानादागमाद्वा ? न तावदस्मदादिप्रत्यक्षात, तस्यानन्तद्रव्यादिभेदप्रभेदागोचरत्वात् । नापि योगि
द्वारा द्रव्यादि और पृथिवी आदिके अनन्त भेद-प्रभेदोंका संग्रह करना अशक्य है। कारण, उनमें संकेत-'इस शब्दका यह अर्थ है' इस प्रकारका इशारा (आभिप्रायिक क्रिया) सम्भव नहीं है। क्योंकि वे हमारे न तो प्रत्यक्षगम्य हैं और न क्रम अथवा अक्रमसे वे अनुमानगम्य हैं। और जो न प्रत्यक्ष हैं तथा न अनुमेय हैं, सर्वथा अज्ञेय हैं उनमें संकेत करना शक्य नहीं है। यद्यपि सर्वज्ञ उन अनन्त पदार्थों में संकेत करनेमें समर्थ है तथापि हम असर्वज्ञोंको वह उनमें संकेत ग्रहण नहीं करा सकता है । ऐसी हालतमें उनमें संकेत कैसे बन सकता है ? और संकेतरहित पदार्थों में शब्द प्रवत्त नहीं होता, जिससे कि जिस शब्दके द्वारा अनन्त पदार्थ ग्रहण किये जाते हैं वह शब्दरूप संग्रह प्रतिपन्न हो ।
३८. शङ्का-यदि शब्दरूप संग्रह प्रतिपन्न नहीं होता तो न हो, किन्तु प्रत्ययरूप संग्रह हो, क्योंकि जिस प्रत्यय ( ज्ञान ) के द्वारा पदार्थ ग्रहण किये जाते हैं उसे प्रत्ययरूप संग्रह कहा गया है और इसलिये उसके द्वारा अनन्त पदार्थोंका ग्रहण किया जा सकता है ? ____समाधान-हम पूछते हैं कि वह प्रत्यय किस प्रमाणसे जाना जाता है ? प्रत्यक्षसे, अनुमानसे, अथवा आगमसे ? हम लोगोंके प्रत्यक्षसे तो वह जाना नहीं जाता, क्योंकि हम लोगोंका प्रत्यक्ष द्रव्यादिके अनन्त भेदों
1. मु 'पृथिव्यादिभेदप्रभेदानां' इति पाठो त्रुटितः । 2. द 'ज्ञ'। 3. व 'संकेतग्राह' । 4. मु 'सिद्ध्यत्येव' ।
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