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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [ कारिका ५ ४१. तदेवं द्रव्यादिपदार्थानां यथावस्थितार्थत्वाभावान्न तद्विषयं सम्यग्ज्ञानम् । नापि हेयोपादेयव्यवस्था, येनोपादेयेषपादेयत्वेन हेयेषु च हेयत्वेन श्रद्धानं श्रद्धाविशेषः; तत्पूर्वकं च वैराग्यं तदभ्यासभावनानुष्ठानं निःश्रेयसकारणं सिद्ध्येत् । तदसिद्धौ च कथमहदुपदशादिवेश्वरोपदेशादप्यनुष्ठानं प्रतिष्ठितं स्यात् ? ततस्तव्यवच्छेदादेव महात्मा निश्चेतव्यः कपिल-सुगतव्यवच्छेदादिवेति सूक्तमिदमन्ययोगव्यवच्छेदान्महात्मनि निश्चिते तदुपदेशसामर्थ्यादनुष्ठानं प्रतिष्ठितं स्यादिति ।
$ ४१. इस प्रकार वैशेषिकोंके यहाँ द्रव्यादि पदार्थोंको जैसा माना गया है वैसे वे व्यवस्थित नहीं होते और इसलिये उनके ज्ञानको सम्यरज्ञान नहीं माना जा सकता है। और न उनमें हेय तथा उपादेयकी व्यवस्था बनतो है, जिससे कि उपादेयोंमें उपादेयरूपसे और हेयोंमें हेयरूपसे होनेवाला श्रद्धानरूप श्रद्धाविशेष और श्रद्धाविशेषपूर्वक होनेवाला वैराग्य, जो कि बार-बार चिन्तन और अनुष्ठानसे सम्पादित होता है, मोक्षके कारण सिद्ध होते। और जब ये तीनों असिद्ध हैं तो अरहन्तके उपदेशकी तरह महेश्वरके उपदेशसे भी अनुष्ठान प्रतिष्ठाको कैसे प्राप्त हो सकता है ? अतः महेश्वरका निराकरण करके हो आप्तका निश्चय करना ठीक है। जैसा कि कपिल, सुगत आदिका निराकरण करके आप्तका निश्चय किया जाता है । अतएव यह ठीक ही कहा गया है कि 'दूसरोंका निराकरण करके ही आप्तका निश्चय होता है और आप्तके निश्चित हो जानेपर ही उसके उपदेशकी प्रमाणतासे मोक्ष-मार्ग प्रतिष्ठित होता है।'
भावार्थ-वैशेषिकोंने द्रव्यादि पदार्थों के ज्ञानको सम्यग्ज्ञान, श्रद्धानको श्रद्धाविशेष और अभ्यासभावनानुष्ठानको वैराग्य वर्णित किया है और इन तीनोंको मोक्षका कारण बतलाया है। परन्तु इनके आधारभूत उक्त द्रव्यादि पदार्थोंकी तथोक्त व्यवस्था प्रमाणसे प्रतिपन्न नहीं होतो है। दूसरे, उसमें अनेक दोष भी आपन्न होते हैं । जैसा कि पहले परीक्षापूर्वक दिखाया जा चुका है। ऐसी हालतमें उक्त पदार्थोके ज्ञानको सम्यग्ज्ञान, श्रद्धानको श्रद्धाविशेष और अभ्यासभावनानुष्ठानको वैराग्य और तीनोंको मोक्षका कारण प्रतिपादन करना अयुक्त है। अतएव उक्त पदार्थोंका उपदेशक महेश्वर आप्त नहीं है और इसलिये उसका व्यवच्छेद करके आप्तका निश्चय करना सर्वथा उचित है, क्योंकि आप्तके उपदेशकी प्रमाणतासे ही मोक्ष-मार्ग प्रतिष्ठित होता है।
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