________________
आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ९ रान्यो मुक्तात्मा, शश्वदस्पृष्टश्च कर्ममलैर्भगवान्महेश्वरः, तस्मान कर्मभूभतां भेत्तेत्यनुमानं प्रकृतपक्षबाधकागमानु ग्राहकम् । न चात्रासिद्ध साधनम् । तथा हि-शश्वत्कर्ममलैरस्पृष्टः परमात्माऽनुपायसिद्धस्वात्' । यस्तु न तथा स नानुपायसिद्धः, यथा सादिमुक्तात्मा। अनुपा-- यसिद्धश्च सर्वज्ञो भगवान् । तस्मात्कर्ममलैः शश्वदस्पृष्टः' इत्यतोऽनुमा-. नान्तरात्तत्सिद्धेरिति वदन्तं प्रत्याह -
नास्पृष्टः कर्मभिः शश्वद्विश्वदृश्वाऽस्ति कश्चन । तस्यानुपायसिद्धस्य सर्वथाऽनुपपत्तितः ॥९॥
५०. न ह्यनुपायसिद्धत्वे कुतश्चित्प्रमाणादप्रसिद्ध तबलात्कर्मभिः कर्ता है वह सदा कर्ममलोंसे अस्पृष्ट नहीं है, जैसे ईश्वरसे भिन्न मुक्त जीव । और सदा कर्ममलोंसे अस्पृष्ट भगवान् परमेश्वर हैं, इसलिये कर्मपर्वतोंके भेदनकर्ता नहीं हैं।' यह अनुमान प्रस्तुत पक्ष-बाधक आगमके प्रामाण्यको ग्रहण करता है। इस अनुमानमें साधन असिद्ध नहीं है। वह इस तरहसे-'भगवान् परमात्मा सदा कर्ममलोंसे अस्पृष्ट हैं, क्योंकि अनुपायसिद्ध हैं-उपायपूर्वक ( तपस्यादि करके ) मुक्त नहीं हुए हैं। जो कर्ममलोसे सदा अस्पृष्ट नहीं है वह अनुपायसिद्ध ( बिना उपायके मुक्त हुआ ) नहीं है, जैसे सादि-तपस्यादिकके द्वारा कर्मोको नाशकर मोक्ष ( मुक्ति) को प्राप्त करनेवाले-मुक्त जीव । और अनुपायसिद्ध सर्वज्ञ भगवान् हैं, इसलिये कर्ममलोंसे सदा अस्पृष्ट हैं।' इस दूसरे अनुमानसे उक्त अनुमानगत साधन सिद्ध है ?
उक्त कथनका निराकरण
समाधान-आचार्य उक्त शंकारूप कथनका सयुक्तिक निराकरण करते हुए कहते हैं :
कोई सर्वज्ञ हमेशा कर्मोंसे अस्पृष्ट नहीं है, क्योंकि वह प्रमाणसे अनुपाय- . सिद्ध प्रतिपन्न नहीं होता।
५०. जब अनुपायसिद्धपना किसी प्रमाणसे सिद्ध नहीं है तो उसके १. प्रयत्नं विनैव मुक्तः । २. सर्वज्ञः।
1. द 'द्ध" । 2. द 'प्रत्याहुः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org