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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ५ गुणत्वाभिसम्बन्धस्य गुणत्वोपलक्षितसमवायपदार्थत्वात् कर्मत्वाभिसम्बन्धस्य च कर्मत्वोपलक्षितसमवायपदार्थस्य कथनात् । न चैवं सामान्यादिपदार्थः सिद्ध्यति, सामान्यादिषु सामान्यान्तराभिसम्बन्ध. स्यासम्भवादित्युक्तं प्राक् ।
३६. एतेन पृथिवीत्वाद्यभिसम्बन्धात्पृथिवीत्यादिशब्दार्थस्य व्याख्यानं प्रत्याख्यातम् । न हि पृथिवीत्वाभिसम्बन्धः पृथिवीशब्दवाच्यः, पृथिवीत्वोपलक्षितस्य समवायस्य पृथिवीत्वाभिसम्बन्धस्य पृथिवीशब्देनावचनात् । द्रव्यविशेषस्य पथिवीशब्देनाभिधानाददोष इति चेत; कः पुनः रसौ वृक्षापादिपृथिवीभेदव्यतिरिक्तः पृथिवीद्रव्यविशेषः ? पृथिवीति पदेन संगृह्यमाण इति चेत्, कथं पुनः पृथिवीपदेनैकेनानेकार्थः संगृह्यते ? द्रव्यादिपदेनेवेति दुरवबोधम्।।
1 [वैशेषिकाभ्युपगतसंग्रहस्य परीक्षणम् ] $ ३७. कश्चायं संग्रहो नाम ? शब्दात्मकः प्रत्ययात्मकोऽर्थात्मको वा ? न तावच्छब्दात्मकः, शब्देनानन्तानां द्रव्यादिभेदप्रभेदानां पृथिव्यापदार्थ और कर्मत्वका सम्बन्ध कर्मत्वसे विशिष्ट समवायपदार्थ प्रतिपादन किया गया है। और इस तरह माननेपर सामान्यादि पदार्थ तो सिद्ध ही नहीं हो सकते, क्योंकि सामान्यादिकों में दूसरे किसी सामान्यका सम्बन्ध सम्भव नहीं है, ऐसा हम पहले कह आये हैं।
३६. इसीसे पृथिवीत्वके सम्बन्धसे पृथिवी आदि शब्दोंके अर्थका व्याख्यान खण्डित हो जाता है, क्योंकि पथिवीत्वका सम्बन्ध पथिवीत्वसे विशिष्ट समवायपदार्थ है जो कि पृथिवीशब्दसे कथित नहीं होता। यदि यह कहा जाय कि द्रव्यविशेष पृथिवी शब्दसे कथित होता है और इसलिये उक्त दोष नहीं है तो बतलायें वह पृथिवीद्रव्यविशेष वृक्ष, क्षुपा आदिक पृथिवीविशेषोंके अतिरिक्त और क्या है ? यदि यह कहें कि जो पृथिवीशब्दके द्वारा ग्रहण किये जाने योग्य हैं वह पृथिवीद्रव्यविशेष है तो एक पथिवीशब्दके द्वारा अनेक अर्थ कैसे ग्रहण किये जाते हैं ? अगर कहें कि द्रव्यादिपदसे जैसे द्रव्यादिकका ग्रहण होता है तो यही समझना अत्यन्त मुश्किल है । तात्पर्य यह कि द्रव्यादिपदका जब अर्थ सिद्ध नहीं हुआ तब पृथिवी आदि पदोंका अर्थ सिद्ध करनेके लिये उसका दृष्टान्त देना असंगत है।
३७. और बतलायें यह संग्रह क्या है ? शब्दरूप है या ज्ञानरूप है अथवा अर्थरूप है ? शब्दरूप तो कहा नहीं जा सकता, क्योंकि शब्दके
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