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१८
स्य संसिद्धेः समर्थनात् ।
आप्तपरीक्षा - स्वोपज्ञटोका
[ स्तोत्रोक्तविशेषणानां प्रयोजनप्रकाशनम् ]
$ १७. किमर्थं पुनरिदं भगवतोऽसाधारणं विशेषणं मोक्षमार्गप्रणेतृत्वं कर्मभूभृद्भेतृत्वं विश्वतत्त्वज्ञातृत्त्वं चात्र' प्रोक्तं भगवद्भि: 1 ?
इत्याह
[ कारिका ४
इत्यसाधारणं प्रोक्तं विशेषणमशेषतः ।
पर- सङ्कल्पिताप्तानां व्यवच्छेद- प्रसिद्धयें ॥ ४ ॥ $ १८. परैवैशेषिकादिभिः संकल्पिताः परसङ्कल्पितास्ते च ते आप्ताश्च परसङ्कल्पिताप्ता महेश्वरादयः, तेषामशेषतो व्यवच्छेदप्रसिदृद्ध्यर्थं यथोक्तमसाधारणं विशेषणमाचार्यैः प्रोक्तमिति वाक्यार्थः । सम्यग्ज्ञान होता है, यह ऊपर अच्छी तरह समर्थित किया जा चुका है ।। ३ ।।
$ १७. शङ्का - ( अगली कारिकाका उत्थानिकावाक्य ) -- उक्त स्तोत्र में जो भगवान् के मोक्षमार्गप्रणेतृत्व, कर्मभूभृद्भेतृत्व और विश्वतत्त्वज्ञातृत्व ये असाधारण विशेषण ( लक्षण ) कहे गये हैं उन्हें सूत्रकारने किसलिए कहा है ? अर्थात् उनके कहनेका प्रयोजन क्या है ?
समाधान- इसका उत्तर यह है :
जो दूसरों — एकान्तवादियोंद्वारा अभिमत - माने गये आप्त ( देवपरमात्मा ) हैं उनका व्यवच्छेद -- व्यावृत्ति बतलानेके लिए उक्त स्तोत्रमें मोक्षमार्गप्रणेतृत्वादि विशेषण कहे हैं ॥। ४ ॥
इसका खुलासा विद्यानन्दस्वामी स्वयं टोकाद्वारा निम्न प्रकार करते
हैं :
$ १८. पर -- जो वैशेषिक आदि हैं उनके द्वारा कल्पित हुए जो महेश्वरादिक आप्त हैं उनका सर्वथा व्यवच्छेद करनेके लिए आचार्य - महोदय ने उपर्युक्त असाधारण विशेषण कहे हैं । निःसंदेह ये तीनों विशेषण १. इह स्तोत्रे मोक्षमार्गस्येत्यादौ ।
२. शास्त्रकारैः ।
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३. ' तदितरावृत्तित्वे सति तन्मात्रवृत्तित्वमसाधारणत्वम्' - तर्कदीपिका । ४. सामस्त्येन ।
५. व्यवच्छेदो निराकरणम्, तस्य प्रसिद्धिः प्रकाशनम्, तदर्थम् ।
1. द 'भवद्भिः' ।
2. द 'णमिति यथोक्तेनेति वाक्यार्थः' इति पाठः ।
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