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कारिका ५]
ईश्वर-परीक्षा अतिप्रसंगात् । न चैकपदवाच्यत्वेन तात्त्विकमेकत्वं सिद्ध्यति, व्यभिचारात । सेनावनादिपदेन हस्त्यादिधवादिपदार्थस्यानेकस्य वाच्यस्य प्रतीतेः।
३२. ननु सेनापदवाच्य एक एवार्थः प्रत्यासत्तिविशेषः संयुक्तसंयोगाल्पीयस्त्वलक्षणो हस्त्यादीनां प्रतीयते, वनशब्देन च धवादीनां तादृश' प्रत्यासत्तिविशेष इत्येकपदवाच्यत्वं न तात्त्विकोमेकतां व्यभिचरति । तथा चैवमुच्यते-द्रव्यमित्येकः पदार्थः, एकपदवाच्यत्वात्, यद्य.कपदवाच्यं तत्तदेकः पदार्थो यथा सेनावनादिः, तथा च द्रव्यमित्येकपदवाच्यम्, तस्मादेकः पदार्थः । एतेन गुणादिरप्येकः पदार्थ: प्रसिद्धोदाहरणसाध
ात्साधितो वेदितव्य इति कश्वित् । अतिप्रसंग दोष प्राप्त होगा अर्थात् दूसरे मतोंको पदार्थसंख्याको भी यथार्थ मानना होगा। दूसरे, एकपदके अर्थपनेसे यथार्थ एकता सिद्ध नहीं होती, क्योंकि वह व्यभिचारी है। 'सेना', 'वन' आदि पदसे आदिक और धव आदिक अनेक पदार्थोंकी प्रतीति होती है। मतलब यह कि 'सेना' शब्दसे हाथी, घोड़े, सैनिक आदि अनेक पदार्थों का बोध होता है और 'वन' शब्दसे धव, पलाश आदि अनेक वृक्षपदार्थोंका ज्ञान होता है-उनसे एक-एक अर्थ नहीं बोधित होता । अतएव एकपदका अर्थपना इनके साथ व्यभिचारी है क्योंकि वे अनेकार्थबोधक हैं, एकार्थबोधक नहीं हैं।
$३२. शङ्का-'सेना' शब्दका अर्थ एक ही पदार्थ है, हाथी आदिकोंमें जो संयुक्तसंयोगाल्पीयस्त्व (घोड़ेसे संयुक्त ऊँट है और ऊँटका संयोग हाथोसे है और इस तरह इनमें विद्यमान अल्पपना-संकोच) रूप सम्बन्धविशेष है वह ही 'सेना' पदका अर्थ है। इसी तरह 'वन' शब्दसे धवादिकोंका उक्त प्रकारका सम्बन्धविशेष ही प्रतीत होता है और वह भी एक हो पदार्थ है। अतः एकपदका अर्थपना यथार्थ एकताका व्यभिचारी नहीं है और इसलिये हम कहते हैं कि 'द्रव्य एक पदार्थ है क्योंकि एकपदका वाच्य है, जो जो एकपदका वाच्य होता है वह वह एक पदार्थ है । जैसे सेना, वन आदिक । और 'द्रव्य' यह एकपदका वाच्य है, इसलिये एक पदार्थ है।' इसी कथनसे गुणादि पदार्थ भी उक्त सेनावनादिके प्रसिद्ध उदाहरणसे एक-एक पदार्थ समझ लेना चाहिए ?
1. द तादृशः'। 2. मु प स 'देकपदार्थो' । 3. द ‘पदार्थः' इति नास्ति ।
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