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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ५ नाभिसम्बन्धादेकत्वमिति द्रव्यं नामैकः पदार्थ इति, तदपि न युक्तम्, परमार्थतो द्रव्यपदार्थस्यैकस्यासिद्धेः तस्योपचारादेव प्रसिद्धः।
$ २८. एतेन चतुर्विशतिगुणानां गुणत्वेनैकेनाभिसम्बन्धादेको गुणपदार्थः, पञ्चानां च कर्मणां कर्मत्वेनैकेनाभिसम्बन्धादेकः कर्मपदार्थ इत्येतत्प्रत्याख्यातम्, तथावास्तवगुणकर्मपदार्थाव्यवस्थितेः। कथं चैवं सामान्यपदार्थ एकः सिद्ध्येत् ? विशेषपदार्थो वा ? समवायपदार्थो वा ? परापरसामान्ययोः सामान्यान्तरेणैकेनाभिसम्बन्धायोगात् विशेषाणां चेति समवाय एवैकः पदार्थः स्यात्।।
२९. यदि पुनर्यथेहेदमिति प्रत्ययाविशेषाद्विशेषप्रत्ययाभावादेकः समवायः तथा द्रव्यमिति प्रत्ययाविशेषादेको द्रव्यपदार्थः स्यात्, गुण इति प्रत्ययाविशेषाद् गुणपदार्थः कर्मेति प्रत्ययाविशेषात्कर्मपदार्थः, सामान्यमिति प्रत्ययाविशेषात्सामान्यपदार्थो विशेष इति प्रत्ययाविशेषाद्विशेष
समाधान----यह कथन भी ठीक नहीं है, क्योंकि वास्तवमें एक द्रव्यपदार्थ सिद्ध नहीं होता, द्रव्यत्वसामान्यके सम्बन्धसे तो एक द्रव्यपदार्थ उपचारसे ही प्रसिद्ध होता है ।
२८. इस विवेचनसे चौबीस गुणोंको एक गुणत्वके सम्बन्धसे एक गुणपदार्थ और पाँच कर्मोंका एक कर्मत्वके सम्बन्धसे एक कर्मपदार्थ मानना था कहना भी खण्डित हो जाता है क्योंकि उस तरह गुणपदार्थ और कर्मपदार्थ वास्तविक एक सिद्ध नहीं होते। दूसरे, यदि द्रव्यादिकी इस तरह व्यवस्था की जाय तो सामान्यपदार्थ, विशेषपदार्थ और समवायपदार्थ ये तीनों एक-एक कैसे सिद्ध हो सकेंगे? कारण, परसामान्य और अपरसामान्यमें, विशेषोंमें और समवायमें एक सामान्यका सम्बन्ध नहीं है । अतएव द्रव्यादिपदार्थोको एक द्रव्यत्वादिसामान्यके सम्बन्धसे एक-एक मानना उचित नहीं है। और इसलिए समवाय ही एक पदार्थ माना जा सकता है क्योंकि वह स्वतः एक है, द्रव्यादि नहीं।।
२९. यदि यह कहा जाय कि जिस प्रकार 'इहेदं-इसमें यह है'इस प्रकारके सामान्य ( एकसे ) प्रत्ययके होनेसे और विशेषप्रत्ययके न होनेसे एक समवायपदार्थ माना जाता है उसी प्रकार 'द्रव्यम्'-द्रव्य-इस सामान्य प्रत्ययसे एक द्रव्यपदार्थ, 'गुण' इस सामान्यप्रत्ययसे एक गुणपदार्थ, 'कर्म' इस सामान्यप्रत्ययसे एक कर्मपदार्थ, 'सामान्य' इस सामान्यप्रत्ययसे सामान्यपदार्थ और 'विशेष' इस सामान्यप्रत्ययसे विशेषपदार्थ
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