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प्रस्तावना
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मिश्रका' ई. ७८८ से ८२० समय समझा जाता है। अतः आ० विद्यानन्द इनके पूर्ववर्ती नहीं हैं-सुरेश्वरमिश्रके प्रायः समकालीन हैं, जैसा कि आगे सिद्ध किया जावेगा। विद्यानन्दके ग्रन्थोंमें सुरेश्वरमिश्र ( ई. ७८८८२० ) के उत्तरवर्ती किसी भी ग्रन्थकारका खण्डन न होनेसे सुरेश्वरमिश्रका समय विद्यानन्द की पूर्वावधि समझना चाहिए।
अब हम आ० विद्यानन्दकी उत्तरावधिपर विचार करते हैं :
१. वादिराजसूरिने अपने पार्श्वनाथचरित ( श्लोक २८) और न्यायविनिश्चयविवरण' ( प्रशस्ति श्लोक २ ) में आ० विद्यानन्दकी स्तुति की है । वादिराजसूरिका समय ई. सन् १०२५ सुनिश्चित है। अतः विद्यानन्द ई. सन् १०२५ के पूर्ववर्ती हैं-पश्चाद्वर्ती नहीं।
२. प्रशस्तपादभाष्यपर क्रमशः चार प्रसिद्ध टीकाएँ लिखी गई हैंपहलो व्योमशिवकी व्योमवती, दूसरी श्रीधरको न्यायकन्दली, तीसरी उदयनकी किरणावली और चौथो श्रीवत्साचार्यकी न्यायलीलावती । आ० विद्यानन्दने इन चार टीकाओंमें पहली व्योमशिवकी व्योमवती टीकाका तो निरसन किया है, परन्तु अन्तिम तीन टीकाओंका उन्होंने निरसन नहीं किया। श्रीधरने अपनी न्यायकन्दली टीका शकसं. ९१३, ई. सन् ९९१में बनाई है । अतः श्री धरका समय ई० सन् ९९१ है और उदयनने अपनी लक्षणावली शकसं. ९०६ ई० सन् ९८४ में समाप्तकी है। इसलिये उदयनका ई. समय सन् ९८४ है अतएव विद्यानन्द ई० सन् ९८४ के बादके नहीं हैं।
३. उद्योतकर (ई. ६००)के न्यायवात्तिकपर वाचस्पति मिश्र (ई.८४१) ने तात्पर्यटोका लिखी है । विद्यानन्दने तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक (पृ. २०६, २८३, २८४ आदि )में न्यायभाष्यकार और न्यायवात्तिककारका तो दशों जगह नामोल्लेख करके खण्डन किया है, परन्तु तात्पर्यटीकाकारके किसी भी पदवाक्यादिका कहीं खण्डन नहीं किया । हाँ, एक जगह ( तत्त्वार्थश्लोक० पृ. २०६ में ) 'न्यायवात्तिकटीकाकार' के नामसे उनके व्याख्यान का
१. गोपीनाथ कविराज–'अच्युत' वर्ष ३, अंक ४ पृ० २५-२६ । २. न्यायविनिश्चयविवरणके मध्यमें भी वादिराजसूरिने विद्यानन्दका स्मरण
किया है, देखो इसी प्रस्तावनाके पृ० ५९ का फुटनोट । ३. 'अधिकदशोत्तरनवशतशाकान्दे न्यायकन्दली रचिता श्रीपाण्डु दासयाचित-भट्ट
श्रीश्रीधरेणेयम् ॥'-न्यायकन्द० । ४. देखो, न्यायदीपिका प्रस्ता० पृ० ६९ ।
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