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प्रस्तावना
पर इनका अनुसरण किया है । अकलंकदेवकी अष्टशतीके गहरे प्रकाशमें ही उन्होंने अष्टसहस्री निर्मित की है और उसके द्वारा अष्टशतीके पद-वाक्यों और सिद्धान्तोंका सबल समर्थन किया है। विद्यानन्दको यदि अकलंकदेवका तत्त्वार्थवार्तिक न मिलता तो उनके श्लोकवात्तिकमें वह विशिष्टता न आती जो उसमें है। अकलंकदेवको उन्होंने एक जगह 'महान् न्यायवेत्ता' तक कहा है। वस्तुतः अकलंकदेवके प्रति उनकी श्रद्धा और पूज्यबुद्धिके उनके ग्रन्थोंमें जगह-जगह दर्शन होते हैं और सर्वत्र अकलंकदेवके सूत्रात्मक कथनपर किया गया उनका विशद भाष्य मिलता है । इस तरह आ० भट्टाकलंकदेवका उनपर असाधारण प्रभाव है
और इस प्रभावमें ही उन्होंने अपनी अलौकिक प्रतिभाको जागृत किया है।
७. कुमारनन्दि भट्टारक-ये अकलंकदेवके उत्तरवर्ती और आ० विद्यानन्दके पूर्ववर्ती अर्थात् ८वीं, ९वीं शताब्दीके विद्वान् हैं। विद्यानन्दने इनका और इनके 'वादन्याय' का अपने तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक, प्रमाणपरीक्षा और पत्रपरीक्षामें नामोल्लेख किया है तथा वादन्यायसे कुछ कारिकाएँ भी उद्धत की हैं। एक जगह तो विद्यानन्दने इन्हें 'वादन्यायविचक्षण' भी कहा है । इससे उनका वादन्यायवैशारद्य जाना जाता है। इनका 'वादन्याय' नामका महत्वपूर्ण तर्कग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं है, जिसके केवल उल्लेख ही मिलते हैं। बौद्ध विद्वान धर्मकीत्तिने भी 'वादन्याय' नामका एक तर्कग्रन्थ बनाया है और जो उपलब्ध भी है। आश्चर्य नहीं, कूमारनन्दिके वादन्यायपर धर्मकीत्तिके वादन्यायके नामकरणका असर हो और उसीसे उन्हें अपना वादन्याय बनानेकी प्रेरणा मिली हो । (ङ) विद्यानन्दका उत्तरवर्ती ग्रन्थकारोंपर प्रभाव
अब हम आ० विद्यानन्दके उत्तरवर्ती उन ग्रन्थकार जैनाचार्योंका भी थोड़ा-सा परिचय दे देना आवश्यक समझते हैं जिनपर विद्यानन्द और उनके ग्रन्थोंका स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। वे ये हैं :
१ माणिक्यनन्दि, २ वादिराज, ३ प्रभाचन्द्र, ४ अभयदेव, ५ देवसूरि, ६ हेमचन्द्र, ७ अभिनव धर्मभूषण और ८ उपाध्याय यशोविजय आदि।
१. माणिक्यनन्दि-ये नन्दिसंघके प्रमुख आचार्यों में हैं । विन्ध्यगिरिके ..१. देखो, तत्त्वार्थश्लो० पृ० २७७ ।
२. 'न्यायदीपिका' प्रस्तावना पृ० ८० । ३. 'कुमारनन्दिनश्चाहुदिन्यायविचक्षणाः ।-तत्त्वार्थश्लोक पृ० २८० ।
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