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आप्तपरीक्षा - स्वोपज्ञटीका
'तर्कग्रन्थोंके अभ्यासी, विद्यानन्दके अतुल पाण्डित्य, तलस्पर्शी वित्रे - चन, सूक्ष्मता तथा गहराईके साथ किये जानेवाले पदार्थोंके स्पष्टीकरण एवं प्रसन्नभूषामें गूँथे गये युक्तिजालसे परिचित होंगे। उनके प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा और आप्तपरीक्षा प्रकरण अपने-अपने विषयके बेजोड़ निबन्ध हैं । ये हो निबन्ध तथा विद्यानन्दके अन्य ग्रन्थ आगे बने हुए समस्त दि०श्वे ० न्यायग्रन्थोंके आधारभूत हैं । इनके ही विचार तथा शब्द उत्तरकालीन दि०श्वे० न्यायग्रन्थोंपर अपनी अमिट छाप लगाये हुए हैं । यदि जैनन्यायके कोशागारसे विद्यानन्दके ग्रन्थोंको अलग कर दिया जाय तो वह एकदम निष्प्रभ-सा हो जायगा । उनकी यह 'सत्यशासनपरीक्षा' ऐसा एक तेजोमय रत्न है जिससे जैनन्यायका आकाश दमदमा उठेगा । यद्यपि इसमें आये हुए पदार्थ फुटकररूपसे उनके अष्ट सहस्री आदि ग्रन्थोंमें खोजे जा सकते हैं । पर इतना सुन्दर और व्यवस्थित तथा अनेक नये प्रमेयोंका सुरुचिपूर्ण संकलन, जिसे स्वयं विद्यानन्दने ही किया है, अन्यत्र मिलना असम्भव है ।' वस्तुतः विद्यानन्द और उनके ग्रन्थों की जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है ।
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६. श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र' -- यह स्तोत्रग्रन्थ भी ग्रन्थकारको रचना है और स्वामीसमन्तभद्रके देवागमस्तोत्र, युक्त्यनुशासनस्तोत्र आदिको तरह तार्किक कृति है तथा उस जैसी ही जटिल एवं दुरूह है । इसको रचना विद्यानन्दने 'देवागम' की शैली से की है, इसलिये इसके पद्यों में देवागम तथा अष्टसहस्रीका कितना ही साम्य पाया जाता है । इसमें कुल पद्य ३० हैं । अन्तिम पद्य तो अन्तिम वक्तव्य एवं उपसंहारके रूपमें है और शेष २९ पद्य ग्रन्थ-विषयके प्रतिपादक हैं । ग्रन्थका विषय श्रीपुरुस्थ भग
१. यह लेखक द्वारा अनुवादित और सम्पादित होकर वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित हो चुका है । इसका विशेष परिचय वहाँ देखिए ।
२. दक्षिण में श्रीपुर नामका एक प्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र है । इसे 'अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ' भी कहते हैं । वहाँके भ० पार्श्वनाथ के सातिशय प्रतिबिम्बको लक्ष्य करके आ० विद्यानन्द ने इस स्तोत्र की रचना की है । श्रीमान् पं० नाथूरामजी प्रेमीने अपने 'जैनसाहित्य और इतिहास' ( पृ० २३७ ) में लिखा है कि 'पास सिरपुरि वंदमि" 1 ' इस पंक्तिके पूर्वार्द्धका सिरपुर ( श्रीपुर ) भी इसी धारवाड़ जिलेका शिरूर गाँव है जहाँका शकसं० ७८७ का एक शिलालेख ( इण्डियन ए० भाग १२, पृष्ठ २१६ में ) प्रकाशित हुआ है । स्वामी विद्यानन्दका श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र सम्भवतः इसी श्रीपुर
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