________________
अपभ्रंश-साहित्य इस काल में अनेक राजाओं ने शस्त्र-विद्या और शास्त्र-विद्या दोनों में समान रूप से प्रतिभा प्रदर्शित कर अपना नाम अमर कर दिया। भोज पंडितों के आश्रयदाता ही न थे स्वयं भी विद्वान् और पंडित थे। अलंकारशास्त्र पर उनका सरस्वती-कंठाभरण, योग पर राजमार्तण्ड और ज्योतिष पर राजमृगांक करण ग्रंथ प्रसिद्ध ही हैं। भोज के समान मोविन्दचन्द्र, बल्लालसेन, लक्ष्मणसेन, विग्रहराज चतुर्थ, राजेन्द्र चोल आदि अनेक राजा अपने पाण्डित्य के लिए प्रसिद्ध हुए। - कृषि-कर्म प्रारम्भ में वैश्यों का ही कार्य था, किन्तु अनेक वैश्य बौद्ध और जैनधर्म के प्रभाव के कारण इस कर्म को हिंसायुक्त और पापमय समझ कर छोड़ बैठे थे। यह कर्म भी शूद्रों को करना पड़ा। किन्तु हवीं-१०वीं शताब्दी में कृषि-कर्म का विधान ब्राह्मणों और क्षत्रियों के लिए भी होने लग गया था।'
किन्तु खान-पान, छुआ-छूत, अन्तर-जातीय विवाह आदि की प्रथाओं में धीरे-धीरे कट्टरता आने लगी और भेदभाव बढ़ता गया। बाल-विवाह, विशेषकर कन्याओं का बाल्यावस्था में विवाह भी प्रारम्भ हो गया। इस काल में राजाओं और धनाढ्यों में बहुपत्नीविवाह की प्रथा प्रचलित थी जैसा कि अनेक अपभ्रंश ग्रंथों से सिद्ध होता है।
__इस प्रकार १४वीं-१५वीं शताब्दी तक राजनीतिक-जीवन के साथ-साथ भारतीयों का सामाजिक जीवन भी जीर्ण-शीर्ण हो गया था। यद्यपि समाज का ढाँचा इस प्रकार शिथिल हो गया था तथापि उसमें बाह्य प्रभाव से प्राकान्त न होकर अपनी सत्ता बनाये रखने की क्षमता अब भी आंशिक रूप में बनी रही। हिन्दू-समाज आक्रान्ताओं के हस्तावलेप से बराबर टक्कर लेता रहा । समाज ने दृढ़ता से विदेशियों की सभ्यता और संस्कृति का सामना किया। साहित्यिक अवस्था
गुप्त-युग में ज्ञान, कला और साहित्य अतीव उन्नत थे। दर्शन, गणित, ज्योतिष, काव्य-साहित्य सभी अंगों में भारतीयों ने गुप्त-युग में जो उन्नति की उसका क्रम एक-दो शताब्दी बाद तक चलता रहा । नालन्दा और विक्रमशिला के विहार प्रसिद्ध ज्ञान के केन्द्र थे। कन्नौज भी वैदिक और पौराणिक शिक्षा का केन्द्र था। धीरे-धीरे ज्ञानसरिता का प्रवाह कुछ मन्द हो गया। अलंकारों के आधिक्य से काव्यों में वह स्वाभाविकता और वह ओज न रहा । भाष्यों और टीका-टिप्पणियों के आधिक्य से मौलिकता का अभाव सा हो गया।
. ११वीं-१२वीं शताब्दी में काश्मीर और काशी ही नहीं बंगाल में नदिया, दक्षिण भारत में तंजोर और महाराष्ट्र में कल्याण भी विद्या के केन्द्रों के लिए प्रसिद्ध हो गये थे। कन्नौज और उज्जैन भी पूर्ववत् विद्या-केन्द्र बने रहे । अलंकार-शास्त्र, दर्शन, धर्मशास्त्र, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष, वैद्यक और संगीत आदि विषय ज्ञान के क्षेत्र थे। . १. सी. वी. वैद्य-हिस्टी श्राफ मिडीवल हिन्दू इण्डिया, भाग २, ओरियंटल बुक सप्लाइंग एजेन्सी पूना, सन् १९२४, पृ० १८३.
२. वही पृष्ठ १८६०