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अपभ्रंश-साहित्य
में संस्कृत पद्यों में कुमार की मंगल कामना की गई है। और ग्रंथ के अन्त में उस के वंश का परिचय भी दिया गया है। ___ कवि ने इस ग्रंथ में छ: संधियों और २२४ कड़वकों में सुकुमाल स्वामी के पूर्व जन्म का वर्णन किया है। पूर्व जन्म में वह कौशाम्बी में राजमंत्री के पुत्र थे। जिन-धर्म में अनुरक्ति होने के कारण इन्होंने जिनधर्म में दीक्षा ले ली। संसार को छोड़ कर विरक्त हो गये। पूर्वजन्म की घटनाओं का स्मरण हो आने पर तपस्या में लीन हो गये । फलतः अगले जन्म में उज्जैन में जन्म लिया और इनका नाम सुकुमाल रखा गया। कवि की कविता का उदाहरण निम्नलिखित रानी के वर्णन में देखा जा सकता है
तहो परवइहे घरिणि मयणावलि, पहय कामियण मण गहियावलि। दंत पंति णिजिय मुत्तावलि, नं मयहो करी वाणावलि । सयलंतेउर मज्झे पहाणी, उछ सरासण मणि सम्माणी । जहि वयण कमलहो नउ पुज्जइ, चंदु वि अज्जु विवट्टइ खिज्जइ । कंकेल्ली पल्लव सम पाणिहि, कलकल हंठि वीणणिह वाणिहिं । णिय सोहग्ग परज्जिय गोरिहि, विज्जाहर सुरमण धण चोरिहे। अहर लछि परिभविय पवालहें, परिमिय चंचल अलिणिह वालहें। सुर नर विसहर पयणिय कामहे, अमर राय कर पहरण खामहें। णयणो हामिय सिसु सारंगहे, संदरि सय लावखय वहि चंगिहे। जाहि नियंवु णिहाणु अकामहे, सोहइ जिय तिहु अण जण गामहे । थोव्वड वयण सिहिणजुअ लुल्लउ, अह कमणीय कणय घडतुल्लउ । रहइ जाहे कसण रोमावलि, नं कामानल घण धूमावलि ।
१.८. कवि ने नारी के अंग वर्णन में प्राय: परंपरागत उपमानों का ही प्रयोग किया है।
___ भविसयत्त चरिउ (भविष्यदत्त चरित्र) श्रीधर ने इस ग्रंथ की रचना वि० सं० १२३० में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की
१. यः सर्व वित्पद पयोज रज द्विरेफः
स दृष्टि रुत्तम मति मद मान मुक्तः। श्लाघ्यः सदैव हि सतां विदुषां च सो त्र
श्रीमत्कुमार इति नंदतु भूतलेऽस्मिन् ॥ २.१ भक्तिर्यस्य जिनेंद्र पाद युगले धर्मे मतिः सर्वदा वैराग्यं भव भोग--विषये वांछा जिने सागमे । सद्दाने व्यसनं गुरौ विनयहा प्रीति बुंधे विद्यते स श्रीमान् जयता जितेंद्रिय रिपुः श्रीमत्कुमाराभिधः॥ ३.१