Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Harivansh Kochad
Publisher: Bhartiya Sahitya Mandir

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Page 394
________________ पन्द्रहवाँ अध्याय अपभ्रंश गद्य इस अध्याय से पूर्व के अध्यायों में अपभ्रंश-साहित्य के जिन अंगों का विवेचन किया गया है वे सब पद्य रूप में उपलब्ध हैं। संस्कृत-साहित्य में भी अधिकांश साहित्य पद्यात्मक ही है, किन्तु गद्यकाव्य का भी अभाव नहीं । कादम्बरी, वासवदत्ता, दशकुमार चरित आदि गद्यकाव्य के सुन्दर निदर्शन हैं । प्राकृत में भी अधिकांश साहित्य पद्य में ही लिखा गया । अपभ्रंश में भी अभी तक प्रायः अधिकांश साहित्य पद्य में ही प्राप्त हुआ है। अपभ्रंश गद्य के स्वरूप का प्राप्त सामग्री के आधार पर, यत्किंचित् निदर्शन इस अध्याय में किया गया है। ____ 'उद्योतन सरि कृत कुवलयमाला कथा' (वि० सं० ८३५) में अपभ्रंश गद्य के कुछ वाक्य उपलब्ध होते हैं -- 'जनादन पुच्छह कत्थ तुझे कल्ल जिमि अल्लया ? तेन भणिउ-साहिउँ जे तेतउ तस्स वलक्खइएल्लयह तणए जिमिअल्लया।" ____ अर्यात् हे जनार्दन ! मै पूछता हूँ तुमने कल कहां जीमां ? उसने उत्तर दियावही जो बल क्षयिक, उसके यहां। (भणिअंच णेण)-यदि पांडित्येन ततो मइं परिणेतव्य कुवलयमाल। (अण्णेण भणियं)-अरे! कवणु तउ पाण्डित्यु ? (तेण भणिअं)-षडंगु पढमि, त्रिगुण मन्त्र पढमि, किं न पाण्डित्यु ?' अर्थात् उसने कहा-यदि पाण्डित्य का विचार है तो मुझे कुवलयमाला से विवाह करना चाहिये। दूसरे ने कहा-अरे ! तुम में कौन सा पाण्डित्य है। उसने कहा-षडंगों को पढ़ता हूँ, त्रिगुण मन्त्र पढ़ता हूँ। क्या मुझ में पाडित्य नहीं ? - इन वाक्यों में पाण्डित्य, परिणेतव्य, षडंग, त्रिगुण मन्त्र इत्यादि तत्सम शब्दों का बाहुल्प है। श्री आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के विचार में इसका कारण संस्कृतपाठशाला का वातावरण है। इन्होंने 'हिन्दी-साहित्य का आदि काल' नामक अपनी पुस्तक (पृ० २०) में कुवलय माला कथा का एक निम्न लिखितउद्धरण दिया है । यह मथुरा स्थित अनाथालय के कोढ़ियों, पंगुओं, अन्धों, अपाहिजों आदि की भाषा का नमूना है। . १. अपभ्रश काव्यत्रयो पृ० १०४ से उद्धृत

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