Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Harivansh Kochad
Publisher: Bhartiya Sahitya Mandir

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Page 427
________________ परिशिष्ट (१) ग्रन्थकार, ग्रन्थ, रचना-काल तथा ग्रन्थ विषय प्रन्थकार प्रन्य रचना-काल विषय सरहपा शबरपा लुईपा दारिकपा कण्हपा शान्तिपा योगीन्दु-योगीन्द्र परिशिष्ट १ स्वयंभू देवसेन दोहाकोष एवं चर्यापद ७वीं - १०वीं शताब्दी रहस्यवाद, पाखंड-खंडन, सहज-माग, से संगृहीत पद ७वीं - १०वीं शताब्दी तन्त्र-मन्त्र, देवतादि की व्यर्थता, गुरु महिमा, वि० सं०८२६ - ८६६ हठयोग इत्यादि ? ? वि० सं० ८६६ - सं. ९०६ वि० सं० १०५७ परमप्पयासु । ८वीं - ९ वीं शताब्दी अध्यात्म-आत्म परमात्म चिन्तन, योगसार । मोक्ष-स्वरूप पउम चरिउ ८वीं - ९वीं शताब्दी जैन धर्मानुकूल रामायण और महाभारत रिट्ठणेमि चरिउ) की कथा सावयधम्म दोहा वि० सं० ९९० नीति एवं सदाचार संबंधी धर्मोपदेश तथा गहस्थोचित कर्तव्यों का उपदेश महापुराण-तिसट्ठी महापुरिस) वि० सं० १०१६-१०२२ जन साहित्य के २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, गणालंकार, नायकुमार चरिउ, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव, और ९ बलदेवजसहर चरिउ ६३ महापुरुषों का चरित्र वर्णन । नाग कुमार और यशोधर का चरित्र वर्णन । धम्म परिक्खा वि० सं० १०४० नाना पौराणिक आख्यानों की असंगति, ब्राह्मण-धर्म पर व्यंग्य, जनधर्म की महत्ता। पाहुड़ दोहा वि० सं० १०५७ के आस-पास अध्यात्म चिन्तन-बाह्य कर्मकांड की अपेक्षा आत्मानभूति एवं सदाचरण की महत्ता।। पुष्पदन्त हरिषेण . मुनिराम सिंह

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