Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Harivansh Kochad
Publisher: Bhartiya Sahitya Mandir
View full book text
________________
परिशिष्ट २
मरगउ जें परियाणियउ तहुं कच्चें कउ गण्णु । (वही, २. ७८ ) मुंडिय मुंडिय मुंडिया सिरु मुंडिउ चित्तु ण मंडिया । चित्तहं मंडण जिं कियउ संसारहं खंडण ति कियउ ॥
( पाहुड़ दोहा, पद्य १३५ )
हुई पढियई मूढ़ पर तालू सुक्कइ जेण । एक्कु जि अक्खरु तं पढहु सिवपुरि गम्मइ जेण ॥ ( वही, ९७ ) सुकारिणि धणु संचई, पाव करेवि गोरु । तं पिछहु सुप्पर भणई, दिणि दिणि गलइ सरीरु ॥
(वैराग्य सार, पद्य ३३)
वउ मसाणि ठवेवि लहु, बंधव गिय घर जंति । वर लक्कड सुप्पउ भणइं, जे सरिसा डज्झति ॥ ( वही, पद्य १० ) जज्झरि भंडइ नीरु जिमु, आउ गलंति पेच्छि । ( वही, पद्य २० ) दुज्जण सुहियउ होउ जगि सुयणु पयासिउ ज्रेण । अमिउ विसें वासरु तमिण जिम मरगउ कच्चेण ॥
( सावय धम्म दोहा, पद्य २ ) मणुयत्तणु दुल्लहु लहिवि भोयहं पेरिउ जेण । इंधण कज्जें कप्पयरु मूलहो खंडिउ तेण । ( वही. पद्य २१९ ) जहिं साहस तहिं सिद्धि । ( वही, पद्य ७१ ) धम्म धम्मु कज्जु साहंतउ । परु मारइ कीवइ जज्झतउ । तु वि तसु धम्मु अत्थि न हु नासइ परम पर निवसइ सो सासइ ॥
धं न करेसि वंछेसि सुह मुत्तिए, चणय विक्केसि वंछेसि वर मुत्तिए । जं जि वाविज्जए तंजि खल लज्जए, भुज्जए जंजि उग्गार तस्स किज्जए ।
४१७
( उपदेश रसायन रास, पद्य २६ )
( भावना सन्धि प्रकरण, पद्य ५२ ) ( वही, पद्य ५७) (वही, पद्य २५ )
घरि पलित्तंमि खणि सकइ को कूवए । किं लोहइं घडिजं हियं तुज्झ ॥ गय मय महुअर इस सलह निय निय विसय पसत्त । starक्केण इ इन्दियण दुक्खं निरंतर पत्त ॥ इक्किणि इंदिय मक्कलिण लव्भइ दुक्ख सहस्स । जसु पुण पंचइ मुक्कला कह कुसलत्तणु तस्स ॥
( संयम मंजरी, पद्म १७-१८)

Page Navigation
1 ... 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456