Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Harivansh Kochad
Publisher: Bhartiya Sahitya Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 434
________________ अपभ्रंश साहित्य कउ मित्त-वियोउ न दुक्ख देइ । वही, (३.१.७) उव्वेव करंडइ फुट्टइ भंडइ काइ मि किज्जइ घरि थियइं। (वही, १.१४.१८४) किं तेण पहवइ बहु धणई, जं विहडियह ण उद्धरइ। कव्वेण तेण किं कइयणेण, जं ण छइल्लहं मणुहरइ ॥ (पज्जण्ण चरिउ से उद्धृत) 'किं विज्जए जाए ण होइ सिद्धि' । 'कि णिज्जलेण घण गज्जिएण' । (बाहु० चरिउ से उद्धृत) एयाण वयण तुल्लो होमि ण होमित्ति पुण्णिमादियहो। पियमंडला हिलासी चरइ व चंदायणं चंदो ॥ . (जम्बू० चरित, ४. १४) सयलज्ज सिरेवणु पयडियाई अंगाई तीय सविसेसं । को कवियणाण दूसइ, सिटुं विहिणा वि पुणरुत्तं ॥ (संदेश रासक, २. ४०) उत्तरायणि वढिहि दिवस, णिसि दक्खिण इहु पुव्व णिउइउ । दुच्चिय वड्ढहि जत्थ पिय, इहु तीयउ विरहायण होइयउ ॥ (वही, २. ११२) सप्पुरिसह मरणाअहिउ पर परिहव संताउ । (वही, २. ७६). पुरिसत्तणेन पुरिसओ नहि पुरिसओ जम्ममत्तेन । जलदानेन हु जलओ नहु जलओ पुञ्जिओ धूमो॥ सो पुरिसओ जसु मानो सो पुरिसओ जस्स अज्जने सत्ति। इअरो पुरिसाआरो पुच्छ विहूना पसू होइ ॥ (कीर्तिलता, पृष्ठ ६) अण्णु जि तित्थ म जाहि जिय अण्ण जि गरुअ म सेवि । अण्णु जि देउ म चिंति तुहुँ अप्पा विमलु मुएवि ॥ (पर० प्रकाश, १. ९५) देउ ण देउले णवि सिलए णवि लिप्पइ णवि चित्ति। अखउ णिरंजण णाणमउ सिउ संठिउ सम चित्ति ॥ जे दिट्ठा सूरुग्गमणि ते अत्थवणि न दिट्ठ ।। तें कारणिं वढ धम्म करि धणि जोव्वणि कउ तिट्ठ ॥ (वही, २. १३२) बहुएं सलिल-विरोलियई करु चोप्पडउ ण होइ । (वही, २.७४) मूल विणट्ठइ तरुवरहं अवसई सुक्कहिं पण्ण । (वही, २. १४०)

Loading...

Page Navigation
1 ... 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456