Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Harivansh Kochad
Publisher: Bhartiya Sahitya Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ ३७८ अपभ्रंश-साहित्य वि० संवत् १३३० में लिखित "आराधना" की एक हस्तलिखित प्रति के गद्य का . नमूना देखिये :___"सम्यक्त्व प्रतिपत्ति करहु, अरिहंतु देवता सुसाधु गुरु जिन प्रणीत धर्मुसम्यक्त्व दंडकु ऊचरहु, सागार प्रत्याख्यानु ऊबरहु चऊहु सरणि पइसरहु ।"१ वि० संवत् १३४० में लिखित 'अतिचार' की हस्तलिखित प्रति का एक नमूना देखिये : "प्रतिषिद्ध जीवहिंसादिकतणइ करणि कृत्य देवपूजा धर्मानुष्ठान तणइ अकरणि जि जिनवचन तणइ अश्रद्दधानि विपरीत परुपणा एवं बहुप्रकारि जु कोइ अतीचारु हुयउ। पक्ष दिवसमांहि।" वि० संवत् १३५८ में लिखित एक हस्तलिखित प्रति का उदाहरण : "पहिलङ त्रिकालु अतीत अनागत वर्तमान बहत्तरि तीर्थकर सर्वपाप क्षयंकर हडं नमस्कार।"3 वि० संवत् १३६९ में लिखित एक हस्त लिखित प्रति के गद्य का नमूना देखिये : "तउ तुम्हि ज्ञानाचार दरिसणाचार चारित्राचार तपाचार वीर्याचार पंचविध आचार 'विषइया अतीचार आलोउ ॥४ विद्यापति रचित "कोत्तिलता में भी अनेक गद्य के उद्धरण मिलते हैं। कीर्तिलता की रचना कवि ने १३८० ई० के लगभग की थी। उस समय गद्य का क्या स्वरूप था यह निम्नलिखित उद्धरणों से स्पष्ट हो जायगा :___"तान्हि करो पुत्र युवराजन्हि मांझ पवित्र, अगणेय गुणग्राम, प्रतिज्ञा पद पूरणक परशुराम, मर्यादा मंगलावास, कविता कालिदास, प्रवल रिपु वल सुभट संकीर्ण समर साहस दुनिवार, धनुर्विद्या वैदग्ध्य धनंजयावतार, समाचरित चन्द्र चूड चरण सेव, समस्त प्रक्रिया विराजमान महाराजाधिराज श्रीमद् वीरसिंह देव ।"६ _ अर्थात उनके पुत्र महाराजाधिराज श्रीमान् वीरसिंह देव हुए, जो युवराजों में पवित्र, अगणित गुणों के समूह, प्रतिज्ञा-वचन पूर्ण करने में परशुराम, मर्यादा के मंगलकारी आवासस्थान, कविता में कालिदास के समान, प्रबल शत्रु सेना के योद्धाओं से पूर्ण युद्धभूमि में अप्रतिहत साहस वाले, धनुर्विद्या की चतुरता में अर्जुन के अवतार स्वरूप, पूज्य महादेव चरणों के सेवक और सव कार्यों में शोभायमान थे। ___ गद्य में समस्त शब्दों का प्रयोग है । संस्कृत के तत्सम शब्दों के प्रयोग की प्रचुरता है । १. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, पृ० ८६ । २. वही, पृ० ८८॥ ३. वही, पृ० ८८। ४. वही, पृ० ९१ । ५. डा० बाबूराम सक्सेना द्वारा संपादित, प्रयाग, वि० सं० १९८६ । ६. वही, पृ० १२।

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456