Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Harivansh Kochad
Publisher: Bhartiya Sahitya Mandir

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Page 417
________________ अपभ्रंश-साहित्य का हिन्दी-साहित्य पर प्रभाव ३९९ सूर ने इसी उपमा का निम्नलिखित रूप में प्रयोग किया:अब मन भया सिन्ध के खग ज्यों फिरि फिरि सरत जहाजन ॥ (भमरगीत ४६) थकित सिन्ध नौका के खग ज्यों फिरि फिरि फेरि वहै गुन गावत। (वही ६०) भटकि फिर्यो वोहित के खग ज्यों पुनि फिरि हरि पै आयो। (वही, ११९) इसी प्रकार अन्य पद भी सूर के पदों में खोजने से मिल सकते हैं। सूर के सूरसागर में कुछ दृष्ट कूट भी मिलते हैं। सूर के इन दृष्ट कूटों का बीज सिद्धों की सन्ध्याभाषा के अनेक पदों से मिल सकता है। इस प्रकार उपरिलिखित संकेतों से हिन्दी-साहित्य में भक्तिकाल के प्रतिनिधि कवियों पर अपभ्रंश-साहित्य के प्रभाव का कुछ आभास मिल सकता है। हिन्दी-साहित्य में रीतिकाल की निम्नलिखित विशेषतायें मिलती हैं :१. अपने आश्रयदाता की प्रशंसा, २. शृङ्गार-भावना की प्रमुखता, ३. नायिका भेद, ४. ऋतु वर्णन, बारह मासा वर्णन, ५. नखशिख वर्णन, ६. कवित्त, सवैया और दोहा छन्दों का प्रयोग । अपभ्रंश साहित्य के चरितग्रन्थों में प्रायः कवियों ने अपने आश्रयदाता का पूर्ण वर्णन किया है। उनमें शृङ्गार-भावना की प्रमुखता नहीं दिखाई देती किन्तु शृङ्गार का अभाव नहीं। प्रायः सभी चरित नायक यौवन में भोगविलासमय जीवन व्यतीत करते हुए दिखाई देते हैं। जैनाचार्यों ने धार्मिक दृष्टि से ही इन चरित ग्रन्थों की रचना की थी अतः रस, नायिकाभेद, शृङ्गार आदि पर स्पष्ट रूप से विवेचन असम्भव था। फिर भी इन चरित ग्रन्थों में बीच-बीच में हमें रीतिकाल के काव्य स्वरूपों के संकेत मिल ही जाते हैं। नयनंदी कृत 'सुदंसण चरिउ' में धार्मिकता के अतिरिक्त, बीच-बीच में ऋतु, विवाह, नखशिख, रति, शृङ्गार आदि का वर्णन भी उपलब्ध होता है। इसमें नायिका भेद के भी दर्शन हो जाते हैं । अपभ्रंश में लिखित इस ग्रन्थ में तथा संदेशरासक, स्थूलिभद्र कथा आदि ग्रन्थों में भी नखशिख वर्णन मिलता है। संदेशरासक का षड् ऋतु वर्णन रीतिकालीन षड् ऋतु वर्णन के समान विरह की भावना से ओतप्रोत है । सब वस्तुएँ विरहिणी के हृदय में वियोग को पीड़ा को द्विगुणित करती हुई प्रतीत होती हैं । बारहमासे का वर्णन भी रीतिकालीन परंपरा में वियोग के प्रभाव को प्रकट करने के लिये ही किया १. देखिय सातवां अध्याय, अपभ्रंश खंड काव्य, पृ० १६९ ।

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