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अपभ्रंश-साहित्य
कवियों ने तत्कालीन संस्कृत-प्राकृत कवियों की भाषा को अपनाया। इसमें समस्त शब्दों तथा अलंकारों की अधिकता है जिससे भाषा अपेक्षाकृत क्लिष्ट हो गई है। यह भाषा शिष्ट और शिक्षित वर्ग की भाषा का रूप है। दूसरी धारा में कवियों ने तत्कालीन संस्कृत-प्राकृत कवियों की भाषा-परम्परा को छोड़ स्वतन्त्र शैली का प्रयोग किया है। इसमें छोटे-छोटे प्रभावोत्पादक वाक्य, शब्दों की आवृत्ति, वाग्धाराओं और लोकोक्तियों का प्रयोग किया गया है। यह भाषा सरल, चलती हुई और अधिक प्रवाहमयी है और यह सर्वसाधारण की बोलचाल की भाषा प्रतीत होती है । अनेक कवियों ने विषय के अनुसार कहीं-कहीं इन दोनों धाराओं का प्रयोग किया है।
संस्कृत कवियों ने प्रायः वर्ण वृत्तों का अधिकता से प्रयोग किया है। प्राकृत कवियों ने मात्रिक छन्दों को अपनाकर वर्ण वृत्तों की जटिलता को कम करने का प्रयत्न किया। प्राकृत कवियों का प्रसिद्ध गाथा छंद मात्रिक छन्द ही है। प्राकृत कवियों ने वर्ण वृत्तों का भी प्रयोग किया किन्तु प्रधानता उन्होंने मात्रिक छन्दों को ही दी। अपभ्रंश में आ कर मात्रिक छन्दों की प्रचुरता और भी बढ़ गई। अनेक नये मात्रिक छन्दों की सृष्टि भी अपभ्रंश कवियों ने की। नाद सौन्दर्य उत्पन्न करने के लिये दो मात्रिक छन्दों को मिला कर अनेक मिश्रित मात्रिक छन्दों का प्रयोग अपभ्रंश कवियों के काव्यों में मिलता है। _ भिन्न-भिन्न सर्गों में भिन्न-भिन्न छन्दों के प्रयोग की प्रथा यद्यपि प्राकृत कवियों में ही लुप्त होने लग गई थी तथापि उसका पूर्ण रूप से लोप अपभ्रंश काव्यों में नहीं हो सका। एक सर्ग में एक ही छन्द का प्रयोग हो ऐसा नियम भी अपभ्रंश काव्यों में नहीं दिखाई देता। एक ही सन्धि में भिन्न-भिन्न छन्दों का प्रयोग भी दिखाई देता है। __छन्दों के चरणों में अन्त्यानुप्रास की प्रवृत्ति अपभ्रंश में दृष्टिगोचर होती है। संस्कृत में पादान्त यमक के अतिरिक्त अन्यत्र इसका अभाव सा ही था। प्राकृत में भी यह प्रवृत्ति नहीं दिखाई देती । अपभ्रंश कवियों की यह अपनी निराली सूझ है। आगे चल कर हिन्दी काव्य भी अपभ्रंश कवियों की इस अनोखी सूझ का ऋणी है। ____ संस्कृत-साहित्य में गद्य के उदाहरण नाटकों में या चम्पू ग्रन्थों में मिलते हैं। बाण, दण्डी और सुबन्धु के ग्रन्थ तो गद्य-काव्य का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं । इस गद्य में अलंकृत शैली के दर्शन होते हैं । यह गद्य, समस्त शब्दों और लम्बे-लम्बे वाक्यों से युक्त है। संस्कृत का विशाल कथा-साहित्य भी गद्य में लिखा हुआ मिलता है । ये कथायें सरस और सरल भाषा में अत्यन्त रोचक ढंग से लिखी गई हैं। ___ अपभ्रंश में गद्य के अधिक ग्रन्थ उपलब्ध नहीं। जो भी गद्य मिलता है, उसकी भाषा पद्य से कुछ भिन्न प्रतीत होती है । गद्य में संभवतः भाषा अधिक विकसित नहीं हो सकी। अपभ्रंश पद्य में संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग नहीं हुआ--संस्कृत और प्राकृत के तद्भव शब्द ही प्रचुरता से प्रयुक्त हुए। किन्तु अपभ्रंश-गद्य में संस्कृत के तत्सम शब्द बहुलता से मिलते हैं। इसी प्रकार संस्कृत के समान समस्त शब्दों का व्यवहार भी अपभ्रंश गद्य में दिखाई देता है । इसके अतिरिक्त गद्य को अलंकृत करने के लिये अन्त्यानुप्रास का प्रयोग भी किया गया।