Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Harivansh Kochad
Publisher: Bhartiya Sahitya Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 392
________________ ३७४ अपभ्रंश-साहित्य है । इसमें षोडश कारण भावना, दशधर्म, १४ मार्गणाओं के अतिरिक्त १४ गुण स्थानों का वर्णन है । ६० वे कडवक से आगे भगवान् महावीर के पश्चात् होने वाले केवली, श्रुतवली आदि के नामों का उल्लेख किया है। इस के पश्चात् भद्रबाहु स्वामी का दक्षिण विहार, दिगम्बर श्वेताम्बर संप्रदायों की उत्पत्ति आदि पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है । कवि ने भूतपूर्व कुन्दकुन्द, भूतबलि, पुष्पदंत आदि आचार्यों और उनकी रचनाओं का भी उल्लेख किया है— कुंदकुंद गणि पुण धम्मुद्धरु जहं पणविउ जिणु सिरि सीमंधरु । पुणु घरसेणायरियउ महंत चंदगुहाणिवसइ धीमंतउ । उज्जतििह ठिउ यिमणि झंकक्खइ सिस्सु ण कोवि गंथु जह अक्खड़ । भूवलि पुष्पदंत मुणिभव्वइं पढिय तत्थ सिद्धंत अउव्वई । धवल तह य जयघवलु पवित्तउ महबंद्धवि तदियउ गरउत्तउ ॥ वही पृ० ७३. कवि ने निम्नलिखित आचार्यों और उनकी रचनाओं का भी उल्लेख किया है-नेमिचंदु सारत्तय कत्तई उमासादि तच्चत्थ पवित्तरं । मुणि सिवकोटि भगवतीराहण कय संबोहु मरण अविराणह । मूलाचारु रयउ वसुनंदिहि महापुराणु जिणसेण अणंदहि । पोमणंदि पच्चीसी गंथदं णाणणउ सुभचन्द पसत्थई । एम माइ वदु गंथ पवित्तइ सूरि परंपर जो सुद कत्तई । अन्त में श्रुतकीर्ति ने तत्कालीन साधु संस्था एवं श्रावक समाज में फैली अज्ञानता एवं चरित्रहीनता की ओर संकेत किया है और बताया है कि समाज तीन प्रकार की मूढ़ताओं का शिकार हो रहा है । लोक मूढ़ता का लक्षण करता हुआ कवि लिखता है - सुरसरि सायर हाणु जि वंछहि वालू पाहण पूय समिछह जलगिरि अग्गिपात कय मरणइं लोय मढ इय धम्म चरणइ ॥ उपरिनिर्दिष्ट कृतियों के अतिरिक्त सप्त क्षेत्रिरासु, मातृका चउपर और सम्यक्त्व माई चउपइ नामक लघु कृतियों का वर्णन प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह में किया गया है । " लक्ष्मी चन्द विरचित श्रावकाचार और पूर्णभद्र विरचित सुकुमाल चरिउ का उल्लेख प्रशस्ति संग्रह में मिलता है । पत्तन भण्डार की ग्रन्थ सूची में भी कुछ लघुकाय स्तोत्र और सन्धि ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है । १. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, पृ० ४७-५८, ७४-७८ और ७८-८२ । २. प्रशस्ति संग्रह, पृ० १७५ । ३. डिस्क्रिप्टिव कैटेलाग आफ मैनुस्क्रिप्ट्स इन दि जनभंडारस् एट पत्तन, भाग

Loading...

Page Navigation
1 ... 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456