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अपभ्रंश कथा-साहित्य
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का शिष्य था ।' जिस समय कवि ने इस ग्रन्थ की रचना की उस समय अणहिल्ल पुर में मूलराज नामक राजा राज्य करता था। चालुक्य वंश में इस नाम के दो राजा हुए हैं। एक ने ९४१ ई० से ९९.६ ई. तक और दूसरे ने ११७६ ई० से ११७८ ई०तक राज्य किया ।२ स्वरचित रत्न करण्ड शास्त्र की हस्तलिखित प्रति (प्रशस्ति संग्रह पृ० १६४) में प्राचीन कवियों का स्मरण करते हुए कवि ने चतुर्मुख, स्वयंभू, पुष्पदन्त, श्रुतदेव, श्रीहर्ष का नाम भी लिया है मौर बताया है कि यह ग्रन्थ कवि ने श्रीपालपुर में राजा कर्ण के राज्यकाल में वि० सं० ११२३ (१०६६ ई० .) में रचा। अतः कथा कोष की रचना भी इसी समय के आसपास हुई होगी।
कथा कोष में ५३ सन्धियों में कवि ने ५३ कथायें दी हैं। ये सब कथायें धार्मिक और उपदेशप्रद हैं। राजा श्रेणिक, मगध देश, पाटलिपुत्र और राजगृह से संबद्ध अनेक कथायें हैं । कथाओं में पशु पक्षी भी पात्र रूप से प्रयुक्त हुए हैं। उदाहरण के लिये एक कथांश नीचे दिया जाता है
मगहा मंडल पयहारम्मि, व्यपाल राउ पायलि पुरम्मि। तत्व एक्कु कोसिउ उयारि, निवसइ मायावि गोउर-वुवारि ॥१ स कयाइ रायसह समीवु, गउ विहरमाणु सुर सरिहे दीवु । 'एक्केण तत्थ कय-सागएण, पुच्छिउ हंसे वयसागएण ॥२
भो मित्त, संसि को कहसु एत्यु, आजमि. पएसहो कहो किमत्यु । षयरट्ठहो वयणु सुणेवि घुउ, भासद हउँ उत्तम कुल पसूउ ॥३ कय खलाणुग्गह-विहि-पयासु, बाहो फह पुहह मंडलासु । वसवत्ति सव्व सामंत राय, हुं वयणु करंति कयाणु राय ॥४ कोलाइ भिमंतउ महिपसत्य, तुम्हइं .निएवि आऊमि एत्थ।
इय वयहि परिसिउ मसलु, विषएण पर्यपि उमह विसाल ॥५ अर्थात् मगध देश के सुखकर एवं सुन्दर,पाटलिपुत्र नगर में प्रतिपाल नामक एक राजा था। वहीं एक उजड़े गोपुर द्वार में एक मायावी उल्लू रहता था। वह एक बार विहार करता हुआ सुरसरि द्वीप में राजहंसों के पास गया। वहां एक वयोवृद्ध हंस ने उसका स्वागत किया और पूछा-हे मित्र, तुम कौन हो? कहां से आये हो ?
१. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी जर्नल, भाग १, पृष्ठ १७१ । २. कैटेलोग आफ संस्कृत एंड प्राकृत मनुस्क्रिप्ट्स इन दि सी. पी. ऐंड . बरार,
भूमिका पु०.५०। ३. "एयारह तेबीसा वरसण (बासमया) विक्कमस्स गरवइणो।
जइय गयाहु तइया -समणियं संदरं एयं ॥ कष्ण गरिवहो रज्जिसुहि सिरि सिरिवाल पुरस्मि ।
वुह सिरिचंदे एउ किउ गंदउ कव्वु जयम्मि ॥ ४. कामता प्रसाद जैन, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ०.५३ ।