Book Title: Apbhramsa Sahitya
Author(s): Harivansh Kochad
Publisher: Bhartiya Sahitya Mandir

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Page 365
________________ अपभ्रंश कथा-साहित्य ३४७ भवण रयण जयहिं गिहालइ, अहिणव तर पल्लव. कर चालइ। मंदिर सिहर थक्क सिहि जूहें, सोहइ देइणं केस समूहें। संचरंत माणिणि पन्भारे, चल्लइ णं णेउर झंकारें। अइ सोहा हुय(व) किह वणिज्जइ, जाहि सुराहिव णयरि ण पुज्जइ। पत्ता--महि हर पीय उच्छंगे, पउर भोय गुणवंती। वसइ तरठ्ठिव कत्ति रयण दित्ति दीवंती॥ इस उद्धरण में कवि ने वैजयन्ती नगरी को एक सुन्दर नारी के समान मनोहारिणी बतलाया है । यद्यपि कवि ने इस नगरी को सुराधिप की नगरी से भी बढ़कर बताया है किन्तु नगरी की वह सुन्दरता और समृद्धि शब्दों में अभिव्यक्त नहीं हो सकी है। कवि वाउवेय रानी का वर्णन करता हुआ कहता है तहो वाउवेय णामेण घरिणि, पइवय णावइ परलोय कुहिणि। णारी मुह लक्खण लक्खियंगि, मुहणयहिं जियच्छण ससि कुरंगि । तहि अहिणव जोव्वणु सवणु णाइ, अरुणच्छवि णह अंकुरिउ लाइ। (तहि जोव्वणु जणि णं वहु विहाइ, अरुण छवि णं अंकुरिउ भाइ) अइ रत्त पाणि पल्लव चलंतु, विल्लहल वाहु वल्ली ललंतु । कोमल जंघा रंभा सहंतु, सिय असिय जयण कुसुमइ वहंतु । पिहु पीण पउहर फलणवंतु, अलयावलि अलिउल सोह देतु। रताहर विवोहल फुरंतु, असच्छाउ (सज्जाउ)सविज्ममु सिलयवंतु । चंदण कप्पूरहिं महमहंतु, खयर वर विसय वर (सुहु) दिहिं जणंतु । नारी के सौन्दर्य वर्णन में कवि ने परंपरागत उपमानों का प्रयोग किया है। कवि की दृष्टि केवल बाह्य सौन्दर्य तक ही पहुँच पाई है । कवि का मेवाड़ देश-वर्णन देखिये जो सिहरि सिहिण केक्कारइल्लु, सरि तडि रहट्ट जव सेयगिल्लु । तरु कुसुमगंध वासिय दियंत्त, णोसेस सास संपुंण्ण च्छित्त। चूय वण कोइलाराव रम्मु, वर सर सारस वय जणिय पेम्मु । भिस किसलय पासायण तु? हंस, मयरंद मत्त अलिउल णिघोस । करवंद जाल किडि विहियतोसु, वण तर हल सउणिगण पोसु। कय सास चरणु गो महिसि महिसु, उच्छ वण पद रिसियरस विसेसु । तप्पाणाणंदिय दीण दु, थल लिणि सयण गय पहिय तंदु । वर सालि सुगंधिय गंधवाहु, तकखणि सकण विय सुय समूहु । णियडत्थ गाम मंडिय पएसु, जणवय परिपूरिथ जाम कोसु । रिउ जोग्ग सोक्ख रंजिय जणोहु, गय चोर मारि भय लद्ध सोहु । घता-जो उज्जाहि सोहइ खेयर मोहइ वल्ली हरहिं विसालाह। मणि कंचण कय पुणहि वण्ण रवणहि पुरहिं स गोउर सालहि ॥ ११.१.

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