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अपभ्रंश कथा-साहित्य अपना छोटा भाई कहा है। कवि की यह उक्ति अम्बाप्रसाद के प्रति अपनी प्रेम भावना के कारण हो सकती है या ऐसी भी संभावना हो सकती है कवि पहिले अम्बाप्रसाद के ही वंश में था और पीछे से विरक्त हो गया। ___ गुज्जर विषय के महियड देशान्तर्गत गोव्हय नगर में चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के शासन में वि० सं० १२४७ में कवि ने इस काव्य की रचना की थी। इस रचना में कवि को पूरा एक मास लगा था।२ कवि ने इस ग्रन्थ के अतिरिक्त मिणाह चरिउ, महावीर चरिउ, जसहर चरिउ, धम्म चरिउ टिप्पण, सुहासिअ रयण निहि, धम्मोवएस चूड़ामणि और झाणा पईउ आदि सात और ग्रन्थों की रचना की और कवि ने अपने आप को इनके अतिरिक्त अन्य संस्कत प्राकृत के काव्यों का रचयिता भी कहा है। उपरिलिखित ग्रन्थों में से मिगाह चरिउ ओर जसहर चरिउ के पद्धडिया बंध में रचे जाने का कवि ने स्वयं निर्देश किया है जिससे प्रतीत होता है कि ये ग्रन्थ अपभ्रंश में रचे गये थे। __इस कृति में १४ सन्धियाँ और २१५ कड़वक है । इसमें कवि ने गृहस्थ धर्म का उल्लेख करते हुए गृहस्थों के लिए छह प्रकार के कर्तव्यों का निर्देश किया है--देव-पूजा, गुरु-सेवा, शास्त्राभ्यास, संयम, तप और दान । इन धर्मों के पालन का उपदेश अनेक सुन्दर कथाओं के द्वारा रुचिकर रूप से किया गया है।
१. णंदउ पर सासण पिणासणु, सयल काल जिण णाहहो सासणु ।
णंदउ अंव पसाउ वियख णु, अमरसूरि लहु वंधु वियक्खणु।
गंदउ अवर वि जिणपय भत्तउ, विवुह वाग भाविय रयणतउ ॥१४.१८॥ २. अह गुज्जर विसयहो मज्झि देसु, णामेण महीयडु वहुपयेसु ।
णयरायर वर गाहिं णिरुद्ध, णाणा पयार संपइ समिछु । तहिं णयर अस्थि गोदयणामु, णं सग्गु विचित्तु सुरेसधामु ॥१.४॥ तं चालुक्क वंसि णय जाणउ, पालइ कन्हु णरेंद पहाणउ ॥१.५॥ बारह सहि सप्तत्त चयालिहि, विक्कम संवच्छरहे विसालिहिं । गयहिमि भद्दवयहो पक्खंतरि, गुरु वारम्मि चउद्दसि वासरि ।
एक्के मासे एह समत्थिउ, सइं लिहियउ आलसु अवरुत्थिउ ॥१४-१८॥ ३. परमेसर पइं णवरस भरिउ, विरयउ णेमिणाहहो चरिउ ।
अण्णइ चरित्तु तच्चत्य सहिउ, पयडत्यु महावीरहो विहिउ । तीयउ चरित्तु जसहर णिवासु, पद्धडिया बंधे किउ पयासु। टिप्पणउ . धम्म चरियहो पयड, तिह विरदउ जिह बुज्झहिजडु । सक्कय सिलोय विहि जणिय दिही, नंफियउ सुहासिउ रयणनिही। धम्मोवएस चूडामणिक्खु, तह ज्झाण पईऊ सुज्माण सिक्खु । छक्कवएसें सुह पबंध, किय अट्ठ संख सइ सच्च संधु । सक्कइ पाइय कम्वइ घणाइ, अवराई कियई रंजिय जणाई ॥१.७॥