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अपभ्रंश स्फुट-साहित्य
३६७ मासा रूप से कवि ने प्रस्तुत किया है।' कृति का आरम्भ कवि ने निम्नलिखित शब्दों से किया है :
सोहग सुंदरु घण लायन्नु सुनरवि सामिउ सामलवन्नु ।
सखि पति राजल चडि उत्तरिय कारमास सुणि जिम वज्जरिय ॥१॥ एवं कृति की समाप्ति भी निम्नलिखित शब्दों से की गई है :--
रयण सिंह सूरि पगमवि पाय बाह मास भणिया भइ भाय ॥ ४०॥ कवि ने श्रावण मास से प्रारम्भ कर आपाद मास तक बारहों मासों का बारहमासा रूप से वर्णन किया है । देखिए-- नेमि कुमरु सुमरवि गिरनारि सिद्धी राजल कन्न कुमारि॥
आंकिणी ॥ श्रावणि सरवणि कडुयं मेहु गज्जइ विरहिरि झिज्झइ देहु । विज्जु झबक्कइ रक्खसि जेव नेमिहि विणु सहि सहियइ केम ॥२॥ सखी भणइ सामिणि मन झुरि दुज्जण तणा म वंछित पूरि। गयउ नेमि तउ विणठउ काइ अछइ अनेरा वरह सयाइ ॥३॥ बोलइ राजल तउ इहु वयण नत्थी नेमि समं वर रयण । घरइ तेजु गह गण सवि ताव गयणि न उग्गइ दिणयर ताव ॥४॥ भाद्रवि भरिया सर पिक्खेवि सकरुण रोअइ राजल देवि। . हा एकलडी मइ निरधार किम ऊबेबिसि करुणासार ॥५॥ भणइ सखी राजल मन रोइ नीठुरु नेमि न अप्पणु होइ । सिंचिय तरुवर परि पलवंति गिरिवर पुण कउ डेरा हुँति ॥६॥ साचउं सखि वरि गिरि भिज्जति किमइ न भिज्जइ सामल कति ।
घण वरिसंतइ सर फुटुंति सायर पुण घणु ओह डुलंति ॥७॥ इसी प्रकार राजुल प्रत्येक मास में अपनी अवस्था का वर्णन करती है और उसकी सखी उसे सान्त्वना देती है।
हिन्दी में इस रूप के बारहमासे की परम्परा की अनुकृति के लिए हिन्दी सूफीकाव्य में शाह बरकत उल्ला कृत 'पेम प्रकाश' के अन्तर्गत बारहमासा वर्णन भी ध्यान देने के योग्य है। __ पीछे अपभ्रंश मुक्तक-काव्य (१)प्रकरण (अध्याय नौ) में उपदेश रसायन रास का वर्णन किया जा चुका है । भरत बाहु बलि रास का पीछे इसी अध्याय में वर्णन किया गया है। इन रास ग्रन्थों के अतिरिक्त पत्तन भण्डार की अन्य सूची (भाग १) में जिनप्रभ रचित नेमि रास (वही पृ० २६९) और अन्तरंग रास (वही प० २७०) नामक दो और रासा ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है। नेमिनाथ रास में रेक्य गिरि मण्डन तीर्थ
१. कामता प्रसाद जैन--हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० ५६ । २. पेम प्रकाश, डा० लक्ष्मीधर शास्त्री द्वारा संपादित, फ्रेंक ब्रदर्स, दिल्ली, १९४३ ई० ।