________________
अपभ्रंश-स्फुट - साहित्य
किरि ससिबिंब कपोल कन्न हिडोल फुरंता । नासा वंसा गरुड चंचु दाडिम फल दंता । अहर पवाल तिरेह कंठु राजल सर रूडउ । जाणु वीण रणरण जाणु कोइल टहकडलउ ॥
(नेमिनाथ फागु पृ० ८३-८४)
३७१
धर्म सूरि स्तुति
यह ग्रन्थ अप्रकाशित है । इसकी हस्तलिखित प्रति का पाटण भण्डार की ग्रन्थ सूचि में उल्लेख है ( वही पृ० ३७० )
यह ५० पद्यों की एक रचना है । इसमें कृतिकार ने धार्मिक बारह मासे का रूप उपस्थित किया है । प्रत्येक मास के साथ गुरु नाम का स्मरण किया गया है । कृति की समाप्ति भी कृतिकार ने "बारह नावउं सम्मत्तं" से की है ।
कृति का आरम्भ निम्नलिखित पद्यों से होता है
तिहुयण मणि चूडामणिहिं बारह नावडं धमुसूरि नाहह । निसुणेह सुयणहु ! नाण सणाहह पहिलउं साबणु सिरि फुरिय ॥१॥ कुवलय दल सामल घणु गज्जइ नं मद्दलु मंडलझुणि छज्जइ । विज्जुलडी झबयििह लवइ मणहरु वित्थारे वि कलासु । अन्नु करेविणु कलि केकारवु फिरि फिरि नाचहि मोरला । मेsणि हार हरिय छमि णवर त्रीजण भय उहिय नोलंबर । वियलिय नव मालइ कलिय ॥२
हलि ! तुह कहियइं गुणहं निहाणु धमसुरि अनु जयसूरि समाणु । अनु न अत्थि को वि जगि
इहु प्रिय ! वरिसंतउ न गणिज्जइ जायवि धमसुरि गुरु वंदिज्जउ । किज्जउ माणस जमु सफलु ॥ ३
गुरु स्तुति श्रावण मास से प्रारम्भ हो कर आषाढ मास में समाप्त होती है । अन्त में अधिक मास का भी उल्लेख है ।
सालिभद्दकक्क'
यह सम्भवतः पउम रचित ७१ पद्यों की एक छोटी सी कृति है । इस में प्रत्येक दोहे का आदि वर्णक, का, ख, खा इत्यादि क्रम से हिन्दी वर्णमाला के वर्णों के अनुसार रखा गया है और इस प्रकार ७१ दोहों की रचना की गई है । कृति का आरम्भ निम्नलिखित पद्यों से हुआ है-
१. वही, पृ० ६२-६७ और पत्तन भंडार ग्रन्थ-सूची भाग १, पृ० १९० ।