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अपभ्रंश-साहित्य ६. अणथमी कहा: इस में रयधू ने रात्रि भोजन के दोषों और उनसे उत्पन्न होने
वाली व्याधियों का उल्लेख किया है। ७. पुण्णासव कहा : रयधू ने पुण्य का आश्रव करने वाली व्रत कथाओं का तेरह
सन्धियों में वर्णन किया है। ८. अणथमी कहा : हरिचन्द लिखित १६ कडवकों की कथा । ९. सोखवई विहाण कहा : रचयिता विमल कीर्ति १०. सुअंध दसमी कहा : रचयिता देवदत्त । ११. रवि वउ कहा : । १२. अणंत वय कहा :
६ दोनों के रचयिता मुनि नेमि चन्द्र हैं ।
१ श्री कामता प्रसाद जैन ने विनय चन्द्र कृत "उवएस माल कहाणय छप्पय" का भी उल्लेख किया है ।' रचना छप्पय छन्द में है। एक उदाहरण देखिये
"इणि परि सिरि उवएसमाल सु रसाल कहाणय, तव संजम संतोस विणय विज्जाइ पहाणय । सावय सम्भरणत्थ अत्थपय छप्पय छन्दिहि, रयण सिंह सूरीस सीस पभणइ आणंदिहिं । अरिहंत आण अणुदिण उदय, धम्मल मत्थइ हउँ ।
भो भविय भत्तिसत्तिहिं सहल सयल लच्छि लीला लहउ ॥ इस संक्षिप्त वर्णन से हमें अपभ्रंश कथा साहित्य की रूप रेखा तथा उस की मुख्य प्रवृत्तियों का परिचय प्राप्त होता है । यह भली भाँति विदित होता है कि कथा साहित्य की परंपरा अपभ्रंश काल में भी विद्यमान थी। अनेक लोक कथाएँ जो उस समय मौखिक रूप में प्रचलित थीं अथवा लेख बद्ध हो चुकी थीं, हिन्दी के नवयुग में प्रविष्ट हुईं। इन में से ही कुछ कथाओं को लेकर सूफी कवियों ने अपने आध्यात्मिक प्रेम मार्ग का अपने प्रबन्ध काव्यों में प्रचार किया ।
१. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, सन् १९४७,
पृ० ३१।