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अपभ्रंश- साहित्य
समुद्र में अगाध जलराशि हैं किन्तु उस खारे जल से क्या लाभ ? प्राकृत पंगल' -
प्राकृत पैंगल में भी कुछ साहित्यिक सुभाषित स्फुट पद्य मिलते । इसमें संगृहीत और उद्धृत पद्य भिन्न भिन्न काल के हैं । ग्रन्थ के रचयिता और रचना के विषय में कुछ निश्चित नहीं । किसी हरि बंभ (हरि ब्रह्म) नामक कवि ने मिथिला-नेपाल के राजा हरिसिंह (१३१४-१३२५ सं०) के मन्त्री चण्डेश्वर की प्रशंसा में कुछ पद्य लिखे थे जो प्राकृत पैंगल में उद्धृत हैं । अतः ग्रन्थ की रचना १३ वीं शताब्दी से पूर्व नहीं हो सकती । ग्रन्थ में कहीं कहीं हम्मीर का उल्लेख भी मिलता है । हम्मीर का समय सन् १३०२ से १३६६ ई० तक माना गया है । अतः ग्रन्थ रचना का काल १४वीं १५ वीं शताब्दी ही अनुमित किया जा सकता है ।
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ग्रन्थ में श्रृंगार, वीर, नीति, राजा देवादि स्तुति संबन्धी भिन्न-भिन्न विषयों के मिलते है, जैसा कि निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट होगा -- नारी रूप वर्णन - - नारी के रूप का वर्णन निम्नलिखित पद्यों में मिलता है-"महामत माअंग पाए ठबीआ, महातिक्ख वाणा कडक्खे घरीआ । भुआ पास भौंहा घणूहा समाणा, अहो णाअरी कामराअस्स सेणा ॥ ( प० ४४३ ) " तरल कमल दल सरि जअ णअणा, सरअ समअ ससि सुअरिस वअणा । मअगल करिवर सअलस गमणी, कवण सुकिअ फल विहि गढ़ रमणी । ( प० ४९६ )
वीरता -
"सुरअरु सुरही परसमणि, णहि वीरेस
समाण ।
ओ वक्कल अरु कठिण तणु, ओ पसु ओ पासाण ॥ " ( पृ० १३९ ) अर्थात् कल्पवृक्ष, सुरभि और पारसमणि तीनों पदार्थ वीर की समानता नहीं कर सकते । एक वल्कल युक्त और कठोर शरीर वाला है, दूसरा पशु और तीसरा पाषाण है । युद्धोद्यत वीर हम्मीर अपनी पत्नी से विदाई लेता हुआ कहता है - हे सुन्दरि ! चरण छोड़, हँस कर मुझे खड्ग दो । म्लेच्छों के शरीर को काट कर निश्चय ही हम्मीर
१. प्राकृत पैंगल, चन्द्र मोहन घोष द्वारा संपादित, बिब्लियोथिका इंडिका, १९००१९०२ ईस्वी ।
२. हिन्दी काव्य धारा, पृ० ४६४
३. पउभरु दरमरु धरणि तरणि रह धुल्लिय झंपिय ।
कमठ पीठ टरपरिअ मेरु मंदर सिर कंपि ॥
कोह चलिय हम्मीर वीर गअ जूह संजते । किअउ कट्ठ हा कंद मुच्छि मेच्छह
के पुते ॥ प्रा० प० पृष्ठ १५७