________________
तेरहवाँ अध्याय अपभ्रंश कथा - साहित्य
ऊपर से अध्ययन से अपभ्रंश साहित्य के अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है, अब कथा साहित्य के विषय में विचार किया जाता है ।
वाङ्मय के बिकास में जैनाचार्यों का प्रशंसनीय योग रहा है । उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, गुजराती, हिन्दी इत्यादि अनेक भाषाओं में लिखा । साहित्य के अंगों में दार्शनिक और धार्मिक विषयों के अतिरिक्त व्याकरण, कोष, अलंकार शास्त्र, अंक गणित, फलित ज्योतिष, गणित ज्योतिष, राजनीति शास्त्र आदि वाङ्मय की शाखाओं को संपन्न किया । '
के साहित्य का मुख्य उद्देश्य जन-साधारण के हृदय तक पहुँचना था । एतदर्थ उन्होंने अपने सभी ग्रन्थों को अनेक प्रकार की कथाओं से सरस और मनोरंजक ने का प्रयत्न किया । अपभ्रंश कवियों के महापुराणों में वर्णित अनेक महापुरुषों के जीवन वृत्तान्तों के साथ साथ अनेक कथाओं और अवान्तर कथाओं का सहयोग हम ऊपर देख चुके हैं ।
दिगम्बर सम्प्रदाय के पुराण साहित्य के समान श्वेताम्बर संप्रदाय में अनेक चरितग्रन्थ लिखे गये । इनमें अनेक महापुरुषों या धार्मिकपुरुषों का वर्णन न होकर किसी एक ही महापुरुष या तीर्थंकर का वर्णन किया गया है। ये चरित-ग्रन्थ भी अनेक पूर्व जन्म की कथाओं और अन्य सरस एवं उपदेश-प्रद कथाओं से ओतप्रोत हैं ।
उपरिनिर्दिष्ट पुराण और चरित ग्रन्थों की शैली के कतिपय कथा-ग्रन्थों से भिन्न इस प्रकार के भी कथा-ग्रन्थों का एक वर्ग मिलता है जो संस्कृत साहित्य के वासवदत्ता, दशकुमार चरितादि लौकिक कथा-ग्रन्थों के ढंग पर रचा गया । इस प्रकार के कथा-ग्रन्थों में किसी लोकप्रसिद्ध पुरुष या स्त्री की किसी जीवन घटना को केन्द्र बनाकर उसका काव्यमय भाषा में श्रृंगारादि रसों से युक्त, वर्णन किया गया है । कथा - प्रवाह में वीर शृंगारादि रसों से पाठकों का आस्वादन होता है । अन्त में पात्र वैराग्यप्रधान हो जाते हैं । कथा - प्रवाह के विस्तार के लिये नायक नायिका के अतिरिक्त उपनायक उपनायिका की कथा भी किसी किसी ग्रन्थ में जोड़ दी गई है । कथा प्रवाह में पात्रों के पूर्वजन्म के कर्मों का निर्देश कर उनके कर्म फल के अनुसार अन्त में सद्गति या दुर्गति का चित्रण कर कथा समाप्त होती है ।
साहित्य के कुछ ग्रन्थों में तो एक ही कथा का विस्तार दिखाई देता है, कुछ
१. मौरिस विटरनित्स, ए हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५९५