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अपभ्रंश मुक्तक काव्य--१
संयम मंजरी यह महेश्वर सूरि द्वारा रचित ३५ दोहों की एक छोटी-सी कृति है।
महेश्वर सूरि के जन्म, काल और स्थान के विषय में कुछ निर्देश नहीं मिलता। इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति वि० सं० १५६१ की है अतः इनका उस काल से पूर्व होना निश्चित है। कालकाचार्य कथानक भी महेश्वर सूरि की कृति है, जिसकी हस्तलिखित प्रति का काल वि० सं० १३६५ है । यदि दोनों महेश्वर सूरि एक ही हों तो संयम मंजरी की रचना इस काल (वि० सं० १३६५) से पूर्व हो गई होगी ऐसी कल्पना की जा सकती है। दोहों के विषय और सूरि उपाधि से इनके जैन होने की कल्पना की जा सकती है।
जैसा कि कृति के नाम से ही प्रकट होता है इसमें कवि ने संयम से रहने का उपदेश दिया है। संयम के द्वारा ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है ऐसी कवि की बद्धमूल धारणा थी। कवि ने संयम के १७ प्रकारों का उल्लेख (दोहा ४) कर कुकर्म त्याग और इन्द्रिय-निग्रह का विधान किया है। जीवहिंसा, असत्य, अदतादान-चोरी, मैथुन और परिग्रह ये पांच पाप बताये ह । मनोदण्ड, वाग्दण्ड या जिह्वादण्ड और कायदण्ड इन तीन दण्डों से बचने का आदेश दिया है। ग्रंथ के आरम्भ में पार्श्वनाथ जी की वन्दना की गई है। आगे कवि कहता है
"संजमु सुरसयिहि थुअउ संजमु मोक्ख दुवारु ।
जेहिं न संजमु मणि धरिउ तह दुत्तर संसार" ॥दोहा २॥ कवि जिन भक्त था। उसके विचार में जिन आँखों ने जिननाथ के दर्शन नहीं किये वे व्यर्थ हैं।
"ये जिणनाहह मुहकमल अवलोअण कयतोस । धन्न तिलोअहं लोअणइं मुह मंडण पर सेस" ॥१४॥ स्त्री रूप की आसक्ति के विषय में कवि कहता है
पर रमणी जे रूव भरि पिक्खिवि जे वि हि (ह) संति ।
राग निबंधण ते नयण जिण जम्मवि नहु होन्ति ॥१५॥ इन्द्रिय-निग्रह का आदेश देते हुए महेश्वर सूरि कहते हैं
"गय मय महुअर झस सलह नियनिय विसय पसत्त। इक्किक्केण इ इन्दियण दुक्ख निरंतर पत्त ॥१७॥ इक्किणि इंदिय मुक्कलिण लब्भइ दुक्ख सहस्स। जसु पुण पंचइ मुक्कला कह कुसलत्तण तस्स ॥१८॥
१. गुणे द्वारा एनल्स आफ भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टिट्यट पूना, भाग १,
१९१८-२० पृ० १५७-१६६ पर तया दलाल-गुणे द्वारा संपादित 'भविसयत्त
कहा' की भूमिका पृ० ३७-४१ पर प्रकाशित हुई है। २. वही, पृ० १५७।