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अपभ्रंश मुक्तक काव्य--२
३११ लई पा-यहाजा धर्मपाल (७६९-८०९ ई०) के कायस्थ-लेखक-थे। पीछे से शबरपाद से प्रभावित हो उन के शिष्य बन गए। सिद्धों में इनका ऊँचा स्थान है। राहुल जी ने इन के तन्जूर में सात अनूदित ग्रन्थों का निर्देश किया है और इन की निम्नलिखित रचनाओं का उल्लेख किया है-अभिसमय विभंग, तत्व स्वभाव दोहा कोष, बुद्धोदय, भगवदभिसमय, लुई पाद गीतिका।
लुईपा इन्द्रिय और चित्त के निग्रह का उपदेश रहस्यमयी भाषा में देते हुए कहते हैं कि चित्त वृत्तियों के शमन तथा इन्द्रियों के दमन का उपाय गुरु से पूछो।
__राग--पट मंजरी काआ तरुवर पंचवि डाल । चंचल चीए पइट्ठा काल॥ दिढ करिअ महासुह परिमाण । लुई भणइ गुरु पुच्छिअ जाण। सअल समाहिअ काहि करिअइ । सुख दुखे त निचित मरिअइ । ए डिएउ छान्दक बान्ध करण कपटेर आस । सुनु पाख भिडि लेहुरे पास ॥ भणइ लुई आम्हे झाणे दिट्ठा। धमण चमण वेणि पाण्डि बइट्ठा ॥
(चर्या०१) निम्नलिखित पद में लुइपा विज्ञान-शून्य-का स्वरूप बताते हुए कहते हैं
राग--पट मंजरी भाव न होइ अभाव ण जाइ अइस सँबोहे को पतिआइ ॥ लुइ भणइ वढ दुलक्ख दिणाणा तिअ धाए विलसइ उह लागे णा ॥ जाहेर बाण-चिह्न रुव ण जाणी। सो कइसे आगम वेएँ वखाणी ॥ काहेरे किस भणि मइ दिबि पिरिच्छा लई भणइ मइ भावइ किस जा लइ अच्छम ताहेर उह ण दिस ।'
(चर्यापद, २९)
१. राहुल जी ने इस पंक्ति को निम्नलिखित रूप में दिया है
"छडिअउ छंद बांध करण कपओर आस । सुण्ण पक्ख भिड़ि लेहु रे आस ॥' २. काल-काला अंधकार । धमन 'बइट्ठा--चन्द्र सूर्य दोनों के ऊपर बैठ कर। ३. विणाणा--विज्ञान, चमत्कार । उह लागे णा--ऊहा, चिह्न अर्थात् इसकी
आकृति का ग्रहण नहीं किया जा सकता; वह किसी स्थूल आकार में प्राप्त नहीं हो सकता। बाण--वर्ण । --वेदों से । दिबि-दो जाय । मिच्छासिक्षा।