________________
३२०
अपभ्रंश-साहित्य
और यह भी संभव है कि उनको ग्रन्थकार ने अपने से पूर्वकालीन किसी कवि के ग्रन्थ से उदाहरण रूप में उद्धृत किया हो । कौन सा पद्य स्वयं ग्रन्थकार का बनाया हुआ है और कौन सा उसने किसी दूसरे कवि का उदाहरण रूप से उद्धृत किया है, इसका ज्ञान सरल नहीं । ऐसी परिस्थिति में इन पद्यों के विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि ये पद्य जिस भी ग्रन्थकार ने उद्धृत किये हैं उन पद्यों की उस काल में या उस काल से पूर्व रचना हो गई थी ।
इन पद्यों में श्रृंगार, वीर, वैराग्य, नीति, सुभाषित, प्रकृति चित्रण, अन्योक्ति, राजा या किसी ऐतिहासिक पात्र का उल्लेख, आदि विषय अंकित हुए हैं । इन पद्यों में कवित्व है, रस है, चमत्कार है और हृदय को स्पर्श करने की शक्ति है । ये पद्य साहित्यिक सुभाषित और सूक्ति रूप मुक्तक काव्य के सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं । ये पद्य गाथा सप्तशती आर्या सप्तशती, सुभाषित रत्नावली आदि रूपों की तरह यद्यपि संगृहीत रूप में नहीं मिले तथापि संभवतः इनका कोई संग्रह ग्रन्थ होगा जिनमें से अनेक कवियों ने उदाहरण के लिये अपनी रुचि के अनुकूल अनेक पद्य चुने, ऐसी कल्पना उचित जान पड़ती है । एक ही पद्य का अनेक ग्रन्थकारों के ग्रन्थों में उल्लेख इसी दिशा की ओर संकेत करता है । उदाहरण के लिये निम्न लिखित पद्य हमें सोमप्रभ के कुमारपाल प्रतिबोध में और प्रबन्ध चिन्तामणि में मिलता है ---
दह मुहु एक्क- सरीरु ।
पियावहुं खीरु ॥"
(कु० ० पा० प्र० पृष्ठ ३९० ) मुहु इक्कु सरीरु । पियावउं खीरु ।। " (प्र० चि० पृष्ठ २८)
इसी प्रकार हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण और प्रबन्ध चिन्तामणि के अनेक पद्य समान रूप हैं । हेमचन्द्र के और सोमप्रभ के अनेक पद्यों में एकरूपता है । इससे हम कल्पना कर सकते हैं कि इन ग्रन्थकारों ने इस प्रकार के पद्यों को किसी संग्रह ग्रन्थ से लिया होगा ।
नीचे इसी विविध साहित्यिक सुभाषित और सूक्ति रूप में प्राप्त मुक्तक परंपरा का संक्षिप्त विवरण दिया जाता है :
" रावण जायउ जहिं दियहि चिताविय तइर्याहं जणणि
कवणु
" जईयह रावणु जाईयउ वह जणणी वियम्भी चिन्तवइ कवणु
कालिदास-कालिदास के विक्रमोर्वशीय नामक नाटक के चतुर्थ अंक में सोन्माद राजा पुरूरवा के मुख से अनेक अपभ्रंश पद्य सुनाई देते हैं । इस नाटक के अतिरिक्त अन्य किसी नाटक में अपभ्रंश पद्य नहीं मिलते । संस्कृत के अन्य नाटकों में कुछ शब्द, वाक्यांश या वाक्य, अपभ्रंश या अपभ्रंशाभास रूप में दिखाई देते हैं किन्तु अपभ्रंश के इस साहित्यिक सौष्ठव का अन्य नाटकों में प्रायः अभाव है । इन पद्यों की प्रामाणिकता के विषय में विद्वान् एकमत नहीं । पद्यों के प्रारम्भ में द्विपदिका, चर्चरी, खण्डक, खुरक, कुटिलिका आदि कुछ गीतों का निर्देश है । कालिदास का समय निश्चित न होने से इन पद्यों के