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अपभ्रंश मुक्तक काव्य-३
३२१ समय के विषय में भी निश्चय से कुछ नहीं कहा जा सकता । पद्यों के कुछ उदाहरण देखिये :--
"मइ जाणिअ मिअलोअणि णिसिअरु कोइ हरेइ।
जाव णु णव तडिसामलि धाराहरु बरिसेइ॥" विक्षिप्त राजा नव तडित् से युक्त श्यामल मेघ को बरसते देख कहता है-मैंने समझा कि कोई राक्षस मृगनयनी उर्वशी को हरण कर लिये जा रहा है। उन्मत्त राजा बादल से प्रार्थना करता है कि :--
"जलहर संहर एहु कोप मिआढ़त्तओ अविरल धारासार दिशा मुह कन्तओ। ए मई पुहवि भमन्ते जइ पिकं पेक्खिहिमि,
तच्छे जं जु करीहसि तं तु सहीहिमि ॥" हे जलघर ! अपना क्रोध रोको । यदि मुझे पृथ्वी पर घूमते घूमते प्रियतमा मिल गई तो जो-जो करोगे सब सहन करूँगा। वह वन में कभी मोर से, कभी कोयल से, कभी चक्रवाक से, कभी हाथी से, कभी पर्वत से, कभी मृग से और कभी वन लता से उर्वशी का समाचार पूछता फिरता है--
"परहुअ महुर पलाविणि कन्ती,
णन्दण वण सच्छन्द भमन्ती। जइं पई पिअअम सा महु दिट्ठी
__ता आअक्खहि महु परपुट्ठी ॥" "हंई 4 पुच्छिमि आअक्खहि गअवरु
ललिअ पहारे णासिअ तरुवरु । दूर विणिज्जिअ ससहरकन्ती,
दिट्ठी पिअ पै समुह जन्ती ॥" "फलिह सिलाअल णिम्मल णिम्भर
बहुविह कुसुम विरइअ सेहरु । किणर महुरुग्गीअ मणोहरु
देखावहि महु पिअअम महिहरु' ॥ हेमचन्द्र-यह श्वेतांबर जैन थे। इनका संबंध गुजरात के जयसिंह सिद्धराज और कुमारपाल नामक दो बड़े बड़े राजाओं के साथ था। इनका जन्म गुजरात के एक जैन वैश्य परिवार में वि० सं० ११४५ में हुआ। यह जैन मठ के आचार्य बने और अन्हिलवाड़
१. परहुअ-परभृता, कोकिल । कन्ती-कान्ते, प्रिये । पइं--तूने। पिअअम-- __ प्रियतमा। परपुट्ठी-पर पुष्टा, कोकिल । हइंपै-मैं तुमसे। गअवर
गजवर । फलिह...णिन्भरु-स्फटिक शिला के समान अत्यन्त निर्मल । २. हिस्ट्री आफ मिडीवल हिन्दू इण्डिया, भाग ३, पृष्ठ ४११