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ग्यारहवाँ अध्याय अपभ्रंश मुक्तक काव्य (३)
विविध-साहित्यिक (प्रेम, शृङ्गार, वीर भावादि संबंधी फुटकर पद्य)
इस से पूर्व अपभ्रंश साहित्य की मुक्तक परंपरा में धार्मिक साहित्य का विवेचन किया गया । अब इसी मुक्तक परंपरा में ऐसे मुक्तक पद्यों का उल्लेख किया जायगा जो संस्कृत प्राकृत के ग्रन्थों में इतस्ततः विकोण मिलते हैं। ये मुक्तक पद्य, अलंकार, व्याकरण और छन्दों के ग्रन्थों में नियमों और उदाहरणों के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। इन पद्यों का प्रयोग प्रायः जन साधारण के जीवन से संबद्ध घटनाओं और दृश्यों में हुआ है। ये पद्य प्रबन्ध ग्रन्थों में प्रबन्धों के अन्तर्गत चारण, गोप आदि पात्रों द्वारा व्यवहृत हुए दिखाई देते हैं और सुन्दर साहित्यिक सुभाषितों और सूक्तियों के उदाहरण प्रस्तुत करते ह।
ये साहित्यिक सुभाषित रूप में प्राप्त मुक्तक पद्य हमें मुख्य रूप से निम्नलिखित ग्रन्थों में मिलते हैं:
१. कालिदास के विक्रमोर्वशीय नामक नाटक का चतुर्थ अंक ।
२. हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण का ८ वां अध्याय, छन्दोऽनुशासन और प्राकृत द्वयाश्रय काव्य।
३. सोमप्रभाचार्य कृत कुमारपाल प्रतिबोध । ४. मेरुतुंगाचार्य कृत प्रबंधचिन्तामणि । ५. राजशेखर सूरि कृत प्रबन्ध कोश। ६. प्राकृत पेंगल। . ७. पुरातन प्रबन्ध संग्रह।
इनके अतिरिक्त आनन्द वर्धन के ध्वन्यालोक, रुद्रट के काव्यालंकार, भोज के सरस्वती कण्ठाभरण, धनंजय के दशरूपक आदि अलंकार ग्रन्थों में भी कतिपय अपभ्रंश पद्य मिलते हैं।
___ इन पद्यों के विषय में यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि विविध ग्रन्थों में प्राप्त इन अपभ्रंश पद्यों के काल के विषय में निश्चय से कुछ नहीं कहा जा सकता । जिन ग्रन्थों में ये पद्य उद्धृत किये गये मिलते हैं वे पद्य ग्रन्थकार के अपने भी हो सकते हैं