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दसवाँ अध्याय अपभ्रंश मुक्तक काव्य-(२) धार्मिक
बौद्ध धर्म सम्बन्धी ___ बौद्ध सिद्धों द्वारा रचित अनेक दोहे और गीत मिलते ह जिनके संग्रह और अध्ययन का प्रयत्न अनेक विद्वानों ने किया है। सर्वप्रथम महामहोपाध्याय पं० हर प्रसाद शास्त्री ने 'हाजार बछरेर पुराण बागंला भाषाय बौद्ध गान ओ दोहा' नाम से इनकी रचनाओं का संग्रह बंगीय साहित्य परिषद् कलकत्ता से सन् १९१६ में प्रकाशित करवाया था। इसी के साथ सरह और कान्ह के दोहा कोष भी प्रकाशित हुए थे। इनके अनन्तर डा० शहीदुल्ला ने इनकी रचनाओं का अध्ययन फ्रेंच भाषा में प्रस्तुत किया। तदनन्तर डा० प्रबोध चन्द्र बागची ने 'दोहा कोष' और 'मैटीरियल्स फोर ए क्रिटिकल एडिशन आफ दि ओल्ड बेंगाली चर्या पदस्' नाम से जर्नल आफ दि डिपार्टमेंट्स आफ लेटर्स भाग २८ और ३० में पूर्व प्रकाशित सिद्धों के दोहों और गानों को तिब्बती अनुवाद के आधार पर संशोधित रूप में प्रस्तुत किया। श्री राहुल सांकृत्यायन ने भी तिब्बती ग्रन्थों के आधार पर इन सिद्धों की रचनाओं पर प्रकाश डाला। पहले उनका एक लेख गंगा पुरातत्त्वांक में प्रकाशित हुआ था तदनन्तर उन्होंने 'पुरातत्त्व निबन्धावली' में सन् १९३७ में हिन्दी के प्राचीनतम कवि नामक लेख द्वारा इनकी रचनाओं को हिन्दी में प्रकाशित करवाया। इसी निबन्धावली में 'वजयान और चौरासी सिद्ध' नामक लेख द्वारा उनकी विचारधारा पर भी प्रकाश डाला।
सिद्धों के अनेक दोहों और गीतों का संग्रह राहुल जी ने 'हिन्दी काव्य धारा' में दिया है। इसी में उन्होंने सिद्धों द्वारा रचित अनेक कृतियों का निर्देश भी किया है। ये कृतियाँ अभी तक प्रकाशित नहीं हो सकी और ना ही प्राप्य हैं। इसलिये इनकी भाषा के विषय में निश्चय से कुछ नहीं कहा जा सकता। इस अध्याय से पूर्व महाकाव्य और खंड काव्य के अध्यायों में प्रबन्ध काव्यों का अध्ययन ग्रन्थ क्रम से प्रस्तुत किया गया था। सिद्धों के ग्रन्थों का पृथक्-पृथक् प्रकाशन न होने के कारण इस प्रकार का अध्ययन संभव नहीं । ऊपर निर्देश किया जा चुका है कि अनेक सिद्धों के दोहों और गानों के कुछ संग्रह प्रकाशित हुए हैं उन्हीं के आधार पर इस धार्मिक साहित्य को समझने का प्रयत्न किया जायगा। __ सिद्धों की रचनाएँ दो रूपों में मिलती हैं-कुछ में धर्म के सिद्धांत, मत, तत्व, आदि का प्रतिपादन है और कुछ में तन्त्र, मंत्र आदि कर्मकाण्ड का खंडन मिलता है। इन्होंने वज्रयान और सहजयान विषयक विचारों को ही अधिकतर अपनी रचनाओं में प्रकट किया है। __बौद्ध धर्म क्रमशः हीनयान और भहायान इन दो धाराओं में विभक्त हो गया। नागार्जुन, महायान का प्रबल पोषक था। नागार्जुन के बाद मैत्रेयनाथ, आर्गदेव, असंग